हरीऔध रत्नाकर प्रसाद और पन्त की काव्य साधना | Hariaudh, Ratnakar, Prasad Aur Pant Ki Kavya Sadhana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इन मिन्न-मिन्न युमीन श्ववतरणों से यह विद होदा है कि खड़ी बोली
कोई स्रष्नलोक की मापा नददीं थी, लॉक प्रचलित भाषा थी । वदद दल्तिय में
रायगढ़ तक भूपण द्वारा पहुँचाई गई थी, यह हिन्दी के राष्ट्रमापात्व का सी
प्रमाण है। दिन्दो काव्य क्षेत्र में ब्रजमापा की मान्यता दोने के कारण
शताब्दियों तक खड़ी बोली की पूछ न हुई। किन्तु नवयुग के श्ारंभ श्रौर
श्रग्रेजी राज्य की स्थापना से देश में क्रात्दिकारी परिवर्तन हुये जिनका
प्रभाव डिस्दी सादित्य पर भी पड़ा | जिसके फलस्वरूप क्रान्ति युग के सादित्यिक
श्रम्दूत भारतेन्दु में सबसे पहले यद्द चेतना जाग्रत हुई कि खड़ी बोली को
कविता का माध्यम बनाना चाहिये |
मारतेन्दु की इस नवचेतना के फलस्वरूप दी जीवन श्रौर कविता का
युग युग का. विच्लिन्न सम्बन्ध पुन: स्थापित हुश्ा । काव्य का स्वर, भाव, रंग,
सभी छुछ बदला। १६वीं शताब्दी के उत्तगद्ध से कदिता में मार्ति की
प्रइत्ति प्ररइुडित हो गई । भारतेन्दु इस क्रान्ति के सा शरीर उनके सइ्योगी
सादित्यकार उसके पोपक हुए ।
कास्ति युग के खा भारतेन्दु ने स्वड्ी बोली में श्रपनी कुछ रचनाएँ प्रसुत
कीं । उदाइरण के लिये उनकी निम्नाकित कविता देखिये :---
बरपा सिर पर झागई, इसे हुई सब भूमि ।
बागों में ऋूने पढ़े, रदे श्रमरगण भूमि ॥
छोड़ छोड़ मरजाद निन, चढ़े नदी नद नाल ।
लगे नाचने मोर बन, बोले बीर, मराल ||
खोल-खोल छाता चले, लोग रुइ़क के बीच ।
कोच में जते फँते, जैसे श्रघ में नोच ॥
मारतेन्दु के सहयोगी पंडित बदौनारायण चौधरी 'प्रेमघन' मे भी खड़ी बोली
में काव्य रचना की । उनकी खड़ी बोली कविता वय नमुना देखिये--
हु प्रबुद पद्ध भारत निनत श्ारत दशा निशा का |
समभ श्रन्त ्वतिशय प्रमुदित दो तनिरू द३ उसने वाक्य !|
र पड मर . टेद
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