अर्हत अरिष्टनेमि और वासुदेव कृष्ण | Arhat Arishtanemi Aur Vasudev Krishn

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Arhat Arishtanemi Aur Vasudev Krishn by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का भ्रहेंत भ्ररिष्टनेमि भौर वासुदेव कृष्ण अवश्य मिलता है। रुप्पिणी को पाने के लिए कृष्ण को दिशुपाल के साथ युद्ध करना पड़ा था।. जैन-श्रागमों के भ्रनुसार कृष्ण के झाठ महेपियां थीं जिनमें पद्मावती देवी सर्वेप्रमुख थी। उनकी रानियों की संख्या तो यहाँ भी १६,००० ही मिलती है पर नामोल्लेख € के ही मिलते हैं । उनके पुत्रों की संख्या का उल्लेख नहीं मिलता पर साम्ब धर प्रयुम्न दो पुत्र निष्वित रूप से थे । उनके एक पौत्र अ्निरुद्ध का नामोल्लेख है। कौरव श्रौर पाण्डवों के बीच जो महायुद्ध हुआ उसमें कृष्ण पाण्डवों के सलाहकार श्रौर निर्देशक रहे। उन्होंने युद्ध-क्षेत्र मे ही श्रर्जुन को गीता का उपदेश दिया ।. जैन-श्रागमों में ऐसा कोई उल्लेख नहीं । कुरु में पाण्डवों की पुन: स्थापना के बाद कृष्ण द्वारका लौटे । यादव कुमारों में ब्रापस में संपषष॑ छिड़ गया । द्वारका की रक्षा के लिये कृष्ण ने नगरी में मद्यपान का निषेध किया । पर एक दिन एक उत्सव पर यदुकुमार मथ में चूर हो परस्पर मार-काट करने लगे ।. कृष्ण का पुत्र प्रयुम्न मार डाला गया। भाई बलराम भी मारे गये । इस तरह सारा परिवार नाश को प्राप्त हुआ । इृण्ण दुखित हो समीप के जंगल में चले गये । वहाँ वे एक भाड़ी के पास में चिन्ताग्रस्त हो लेट गये। एक दिकारी ने उन्हें हरिण समभ उनपर वाण छोड़ा । वाण सीधा पैर के तलवे में लगा श्रौर कृष्ण की मृत्यु हो गयी । इसके बाद द्वारका समुद्र दारा स्रसित हुई । जैन-भझागमों में भी ढारवती नगरी का विनादा मदिरा, श्रर्नि




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