भिक्षु न्याय कर्णिका | Bhikshu Nyaaya Karnika

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Bhikshu Nyaaya Karnika by आचार्य श्री तुलसी - Aacharya Shri Tulasiछगनलाल शास्त्री - Chaganlal Shastri

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छगनलाल शास्त्री - Chaganlal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाम्‌ श्री मिज्नुयायकणिका आओ स्यद्वादोपदिप्टार॑ सींग दिशरात्मजमु। मवत्यामिनस्य बुर्देह श्री निधुन्यादर दिशमु ॥ प्रथमो विभाग युर्यार्थप्रीवण न्याय ॥ ११ मायमापनपोरिरोधा सुर, सर्पप्रीक्षपोपायो था । सीने श्रा्यति्पर्सिदिंन से स्दाय । प्रमात, प्रमेय, प्रमिति', प्रमाता घेति घतुर््ध ॥२॥ प्रमाघम्‌--सापनम, प्रमयमू-नवरतु परमितिन-पलम, प्रमाता परोगक, अयसिद्धयं सदपति 1 ३॥ सस्ते प्राइम , इटाबाधि, साइशकिरयेंलि प्रिशिपाइसिदि | सत्र “यापस्व म्रातें' साशाजिमित माइशमिरेव ।




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