हिंदी कारकों का विकास | Hindi Karko Ka Vikash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ ं हंदी-कारकों का विकास उसे बरजते हैं । यदि संक्षेप में हमें श्पना विचार प्रकट करना होता है तो हम या “हाँ” कर देते हैं या. नहीं । यहीं विधि-निपषेघ हैं । किसी वस्तु वा व्यक्ति के विपय में हमारे विचार या ते होते हैं या निवृत्तिमय «हम अपने विचारों द्वारा या तो प्रेरसा देते वा प्रेरित होते हैं श्रथवा उससे हटाते वा इटते हैं । जीवन-व्यापार में हम किसी न किसी रूप में ये ही दो कार्य करते हैं । हमारे विंचार कभी संग्रहमय होते हैं कभी त्यागमय | दम अपने बिंचारों से प्रेरित होकर या तो किसी वस्तु वा व्यक्ति का संग्रह करते हैं या उसका त्याग | इसी प्रकार हमारे विचार किसी वस्तु वा व्यक्ति के प्रति द्र्थ- वादमय होते हैं। शझ्रथवाद की अभिधा हैं. निंदा वा स्तृति । दस अपने विचारों द्वारा या तो किसी की निंदा करते हैं झ्रथवा स्तुति, इनके ( विचारों के ) द्वाश या तो हम किसी के प्रति श्रपनी श्रप्रसन्नता प्रकट करते हैं झ्रथवा प्रसन्नता । श्रप्रसन्नता होने पर हम उसकी ्रोर से हटते हैं और प्रसन्नता होने पर उसकी ओर बढ़ते हैं | सूदम दृष्टि से . विचार करने पर ज्ञात होगा कि इन सभी वर्गों के के मूल में 'हाँ' वा “नहीं “प्रवृत्ति वा निवृत्ति” ही स्थित है । ... हमें यह विस्मरण न दोना चाहिए कि ये प्रवृत्ति तथा निमूत्तिमय विचार वाक्य के द्वारा ही झ्भिव्यक्त होते हैं । और इनकी दभिव्यक्ति कह १, गोस्वामी तुलसीदास ने भी 'करम कथा का 'विधि-नि्षषमय' होना कहा द--विर्धि-निषेषसय कलि-मल-दरनी । करम कथा रविनंद्िनि बरनी ! न्मानस, बालकांड । कि २. इंदवर भी हमें या तो किसी वस्तु की ओर गति देता है या उससे बरनत। हे--तदेजति तन्नेजति । कक -देशीपसिपद, स० 1. ,




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