गंगा लौट हिमालय आए | Ganga Laut Himalaya Aaye

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Ganga Laut Himalaya Aaye by आचार्य श्री रामलालजी - Aacharya Shri Ramlalji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छू 15 ! श्री राम उवाच-9 बंधुओ ! आपने उस सिंह-शावक की कथा सुनी होगी जिसकी माँ उसे जन्म देने के बाद मर गई थी और जिसे एक गडरिये ने अपनी भेड़ों और उनके बच्चों के साथ पाला था। भेड़ों के बीच पलने के कारण वह भी अपने-आप को भेड़ ही समझने लगा था और उसका व्यवहार भी भेड़ों के जैसा हो गया। परन्तु एक बार एक सिंह ने भेड़ों के उस झुण्ड पर हमला कर दिया। उसकी दहाड़ सुनकर सभी भेड़ें भाग चली और उनके साथ वह सिंह-शावक भी भाग गया। दूसरे दिन पानी पीते समय उस सिंह-शावक ने जल में अपना प्रतिबिम्ब देखा। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि उसकी 'आकृति तो पिछले दिन दहाड़ने वाले सिंह से मिलती थी, अपने आस-पास खड़ी भेड़ों से नहीं। तब उसने सोचा कि मैं भी गर्जना करके देखूं । उसने केवल जिज्ञासावश गर्जना की, परन्तु उसकी गर्जना सुनकर सब भेड़ें भागने लगीं। तब उसने अनुभव किया कि उसका स्वभाव भी उन भागने वाली भेड़ों के जैसा नहीं था। उसे विश्वास हो गया कि वह भेड़ था भी नहीं। उसका अज्ञान दूर हो गया, उसने अपनी पहिचान कर ली और उसका जीवन बदल गया। इसके बाद वह भेड़ों के साथ नहीं रहता था। ऐसे ही जो अपनी पहचान कर लेता है उसका जीवन बदल जाता है। वह इस संसार और अपने जीवन की वास्तविकता समझ जाता है। तब वह राग-द्वेष-कषाय आदि से अपनी आत्मा को मलीन नहीं होने देता। तब वह सच्चा वीर बन जाता है और तभी वह 'वीर' के पंथ का सच्चा अनुयायी कहलाने का अधिकारी भी बन पाता है। जैसे वह सिंह-शावक अपनी पहचान कर पाया। वैसे ही आप भी अपनी पहचान 'वीर' के रूप में करके 'महावीर' के संघ में मन-वचन-काया और कर्म से सदस्य बन जायें। इस प्रकार आप उस अआज्ञान को उतार फेंकेंगे जो किसी दुर्भाग्य या संयोग से आपके साथ वैसे ही जुड़ गया है जैसे सिंह-शावक के साथ जुड़ गया था। ध्यान रखिये कि आपके भीतर भी वह वीरत्व' भरा हुआ है। आप धर्म का उद्घोष करके तो देखिये, माया-मोह-लोभ-तृष्णा का सारा रेवड़ भाग खड़ा होगा। आपकी भी कामना जगे, जिज्ञासा उत्पन्न हो तो वह ज्ञान प्राप्त हो सकता है जो आपको अपनी पहचान करा दे। इसके लिये पुरुषार्थ जागृत कीजिये।




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