टॉलस्टॉय और गाँधी | Tolstay Aur Gandhi

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दीनानाथ व्यास - Dinanath Vyas

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श्रीरुद्र नारायण - Srirudra Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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् टॉल्सटॉय श्रौर गाँधी उनके पापाचरण की श्रपेक्षा श्रधिक पापाचरण किया हे!” बदद उस '्रपराघी की श्रपेक्षा जज तर जेल-रक्षक को शधिक ्यपराधी समसते थे । कम 2६... ्र ९ टॉल्सटॉय जिस घटना प्र विचार करते, उसमें इतने श्रोत- .सोत होजाते, कि झपने अस्तित्व तक को भुला देते । वह जिस किंसी तथ्य को लेते, उस पर झ्रपने निर्जी दृष्टिकोण से विचार करते । “रूढ़िवाद के तो वद्द भयड्डर शत्रु थे, चाहे वद्द सामाजिक संस्कारों के रूप में हो, चाहे साहित्य के रूप में, चाहे संगीत के रूप में । किसी विचार की तल्लीनता कभी-कभी उनके लिए इतनी प्रबल सिद्ध दोती कि वह उसके श्रावेश में कोई मयकझजर कार्य्य तक कर बेठते । एक यार श्राप छत पर वैंठे थे । प्रकृति की शान्त शोभा ने उन पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि श्राप छत पर से कूद पड़े । उनका विश्वास था कि इन पक्षियों की भाँति आप भी वायु में स्थिर हो सकेँगे तौर «इघर-उघर उड़ने. लगेंगे। पर उड़ने तो न पाये, नीचे गिरकर ,खूब चोट खा गये।. इन्होंने इसका वर्णन भी श्पने उपन्यास “युद्ध और शान्ति” में “किया है।.. . हें हि नर कला क्या है ई--इस सम्बन्ध में वद्द पुराने शास्त्रियों के मद के सबंधा विरुद्ध थे। 'कला” (छा 815 110 में उन्होंने इन 'शास्त्रियों की खूब खबर ली है । निरद्धेश्य रचना को वह कला _ का परम-लदय मानने को तैयार न थे । झपनी पुस्तक में उन्होंने




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