युद्धकाण्ड | Yuddhkand

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Yuddhkand  by कविशेखर भट्ट चंद्रशेखर - Kavishekhar Bhatt Chandrashekhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( श् ) सत्तावनवाँ सर्ग ४8६७ -४०७ अकस्पन के वघ से चकित राचण का सचिवों के साथ 'अपने गुल्मों का निरीक्षण, सेना के साथ प्रहस्त का समरझूमि में श्रवेश । रथ 0 ही झअडट्टाचनवां सगे ४०७-४२३० प्रहस्त को देख श्रीरामचन्द्र जी का विभीपण से पूँ छना कि यह कौन है १ प्रहस्त के वल्नपौरुष का परिचय दे; विभीषण का कह्दना कि, यह रावण का सेनापति है । प्रहस्त के साथ बानरों की लड़ाई। वानरसेनापति नील के हाथ से प्रहस्त का घराशायी होना । उनसखवाँ ततर्ग प्२१--५३२ प्रहस्त के मारे जाने पर रावण का शोकान्वित और कुपित्त होना । लड़ने के लिए रावण का स्वयं लड&्डा से चिकना । राक्षसी सेना के विपय में श्रीराम जी का विभीषणु से प्रश्न । विभीपण का रादास सेनापतियों का प्रभाव बन । ससर-भूमि सें राक्षसेश्वर को देख श्रीरास जी का विस्मित होना । रावण के साथ सुप्रीच का युद्ध । युद्ध में सुभीव का वेहोश होना ! रावण और हुमान का युद्ध । हदुमान की मार से रावण का क्लुव्ध होना । नील के साथ रावण का युद्ध । नोल का भूमि पर मिरना | लक्ष्मण के साथ रावण की लड़ाई । रावण की फेंकी शक्ति का लक्ष्मण की छाती में लगना और उससे लक्ष्मण जी __ का मूच्छित होना । क्रोध में भर हनुसान जी का रावण की छाती में घूँ सा मारना, जिसंसे रावण का मूच्छित हो चा० रा० यु० २ ०




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