युद्धकाण्ड | Yuddhkand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
736
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( श् )
सत्तावनवाँ सर्ग ४8६७ -४०७
अकस्पन के वघ से चकित राचण का सचिवों के
साथ 'अपने गुल्मों का निरीक्षण, सेना के साथ प्रहस्त
का समरझूमि में श्रवेश ।
रथ 0 ही
झअडट्टाचनवां सगे ४०७-४२३०
प्रहस्त को देख श्रीरामचन्द्र जी का विभीपण से पूँ छना
कि यह कौन है १ प्रहस्त के वल्नपौरुष का परिचय दे;
विभीषण का कह्दना कि, यह रावण का सेनापति है ।
प्रहस्त के साथ बानरों की लड़ाई। वानरसेनापति
नील के हाथ से प्रहस्त का घराशायी होना ।
उनसखवाँ ततर्ग प्२१--५३२
प्रहस्त के मारे जाने पर रावण का शोकान्वित और
कुपित्त होना । लड़ने के लिए रावण का स्वयं लड&्डा से
चिकना । राक्षसी सेना के विपय में श्रीराम जी का
विभीषणु से प्रश्न । विभीपण का रादास सेनापतियों का
प्रभाव बन । ससर-भूमि सें राक्षसेश्वर को देख श्रीरास
जी का विस्मित होना । रावण के साथ सुप्रीच का युद्ध ।
युद्ध में सुभीव का वेहोश होना ! रावण और हुमान का
युद्ध । हदुमान की मार से रावण का क्लुव्ध होना । नील
के साथ रावण का युद्ध । नोल का भूमि पर मिरना |
लक्ष्मण के साथ रावण की लड़ाई । रावण की फेंकी शक्ति
का लक्ष्मण की छाती में लगना और उससे लक्ष्मण जी __
का मूच्छित होना । क्रोध में भर हनुसान जी का रावण
की छाती में घूँ सा मारना, जिसंसे रावण का मूच्छित हो
चा० रा० यु० २ ०
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