श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग - 1 | Shri Jain Siddhant Bol Sangrah Bhag - 1

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Shri Jain Siddhant Bol Sangrah Bhag - 1  by भैरोंदान सेठिया - Bherondan Sethiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न जे ज़ै जे “शी जेन सिद्धास्त वोल संग्रह” नामक ्रन्थ का प्रंथम भाग पाठकों के सामने रखते हुए मुझे विशेष हप हो रहा है । इसे तथ्यार करने में मेरा मुख्य उद्देश्य था झात्म-संशोधन । पृडावस्था में यदद काये मुझे चित्त शुद्धि, आत्म-सन्तोप और ध्यान की '्रोर प्रवृत्त करने के लिए विशेष सहायक हो रहा है । इसी के श्रवण, मनन और परिशीलन में लगे रहना जीवन की विशेष अभिलापा है ! इसकी यह आंशिक पूर्ति मुझे असीम आनन्द दे रहदी है । ज्ञान प्रसार ओर पारमार्थिक उपयोग इसके श्यानुपंगिक फल हैं । यदि पाठकों को इससे कुछ भी लाभ हुआ तो मैं अपने प्रयास को विशेष सफल समझूं गा । प्रस्तुत पुस्तक मेरे उद्दिषि प्रयास का केवल प्रारम्भिक अंश है । इस प्रथम भाग में भी एक साल का समय लग गया है। दूसरा भाग भी शीघ्र हो प्रकाशित करने को श्रभिलापा है । पाठकों की शुभ कॉमना का बहुत बड़ा बल अपने साथ लेकर ही में इस कायभार को वहन कर रहा हूँ । बीकानेर चूलन प्रेस के सामायिक भवन में इस सद्दिचार का श्रीगणंश हुआ था और वहीं इसे यह रूप प्राप्त हुआ है । उद्देश्य, विपय और वातावरण की पवित्र छाप पाठकों पर पढ़ें बिना न रहेगी, एसा मेरा विश्वास है । संबतू १६३२ तथ १६३६ में 'छत्तीस बोल संप्रदद' नामक प्रन्थ के प्रथम भाग श्र द्वितीय भाग क्रमश! प्रकाशित हुए थे । पाठकों ने उन संप्रहों का यथोचित झादर किया । अब भी उनके प्रति लोगों की रुचि वनी हुई है । वे संग्रह ग्रन्थ भी वर्षों के परिश्रम का फल थे; और अनेक




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