संस्कृत साहित्य का इतिहास | Sanskrit Sahitya Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.73 MB
कुल पष्ठ :
227
श्रेणी :
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No Information available about डॉ.दयाशंकर शास्त्री - Dr. Dayashankar Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ संस्कृत-साहिंत्य का इतिहास विद्वानों का संत है कि रामायण वी कथा महाभारत की कथा से प्राचीन है कित्तु रामायण की रचना वाद में हुई बोर महामारत दी उससे पुव॑ क्योंकि रामायण की भाषा एवं शैली परिष्कृत-विकर्सित है और महामारत की बपरिष्कृत एवं बविकसित इत्यादि । | है रस- रामायण महाकाब्य का रस करण हैक । रामायण कया है? करुणरस वा स्थायीभाव-शोक--वात्मीकि के हृदय का शोक । वाल्मीकि ने देखा कि एक बहेछिये ने क्रौथ-क्रौथी के जोड़ें मे से फ्री पत्नी को उस समय मार दिया जब वह कामभावना से अभिसूत था । क्रो छटपटा रहा था क्रोची चीख रही थी --आतंस्वर मे विलाप कर रही थी । वाह्मीकि का हृदय वेदना से भर आया बहेलिये को शाप दे दिया- रे तु कभी प्रतिष्ठा न प्राप्त करे तूने क्रौड के जोड़ में से काममोहित क्रौल् दो जो मार दिया है इस लिये -- गमा निषाद प्रतिप्वां त्वमगम शाखती समा । यत् क्रौच्चमिधुनादेकमवघी कॉममोहितम् ॥। बालकाण्ड-र। १४ बात्मीकि के करुणरससमाहित धापसमस्वित इलोक को सुनकर प्रभावित ब्रह्माजी मे उनसे रामचरित लिखने का अनुरोध किया वाह्मीकि का शौक लनायास ही रामचरित के ब्याज से काव्य वन गया। महीं करुणरस रामापण वी आत्मा है । रत हो तो काव्य थी छाहमा होती है-- काव्यस्यात्मा स एवार्थस्तथा चादिकवे पुरा । क्रौन्चद्र्द्ववियोगोत्य शोक दलोकत्वसागत ॥ घ्वन्याठोक-वरारिका- ४ बाह्मीकि रामापण के वरुणरस के आस्वाद से प्रमावित पालिंदास अवभूति झादि यश्वी महावदियों ने वरुणरस का जैसा सफल समावेश अपनी-अपनी कृतियों में किया वैता वन्य कवि नहीं कर सके हूँ । तभी तो भवमूति ने भकेले बदण को ही रस माना है । उनकी दृष्टि से भन्य रस तो उसी के बिवार हैं- एको रसः करुण एव निमित्तभेदातु । तभी हो कं रामापणे हि फदणों रसः ध्वन्पालोक पर उद्योत बारिका ४
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