बर्फ की चट्टान | Barf Ki Chataan

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Barf Ki Chataan by सुमेर सिंह दइया - Sumer Singh Daiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अधेरा भुकने लगा है. यद्यपि भ्रमी तक वत्तिया ठीम प्रबार से जल नहीं रही हैं । संध्या कालीन बयार मे शीत का हल्का हल्ा प्रकोप है । फर्सट के साथ हवा खिडक्यो म से श्रदर डिवे मे प्रवेग कर रही है, इसलिय दखते देखते कुठ खिडक्पि क॑ शीगो चढ़ गये । ट्रेन एक् छोटे से स्टेशन पर श्राइर कुछ देर वे लियं रुकी । बेटार का हठात ध्यान टूटा, जब एक पोटर वी झावाज पास वी खिड़की के नज़दीव खिचती चली भाई । सम्भवत उसने स्टशन का नाम पुकारा है। खूब प्रशस्त भ्रपेरा है जिसम उस छोटे से स्टेशन का एक भ्रकेला बहा सा गस सू सू करता जल रहा है । स्टेशन मास्टर के कबिन से लाल टेन का पीला प्रकाश तथा घटी टुनदुनाने की झावाज़ भा रही है । किसी एकाध का बोलता स्वर भी भ्षेरे म कही ध्वनित हो रहा है । शेप चतु डिक नि शब्तता व्याप्त है । ट्रेन फिर चलने लगी । थोड़ी दूर तक तो पीछे छूटता गैस दिवाई देता रहा । इस श्रवारतर्षी अपेरे मे हरी कण्टी हिलाता हुमा स्टेशन- मास्टर एक धजे के सहश्य प्रतीत होने लगा « पोटर क हाथ की लालटेन भी एक टाच की हत्की सी रोशनों के समान चमक वर लुप्त हो गई । इसी समय ट्रेन खट्-खठाग करती एक छोटे से पुल को तेजी से पार कर गई। न प्राय डिब्बे के सभी लोग सोने की तयारी कर रहे हैं । सर्दी भी काफी हो गई है। उनमे से कुछ रजाई झर दम्वल झ्रोढ कर ऊघन भी सगे हैं । सामने को वय पर चहू भद्र पुरुष एक कोने मे सिर टिका कर




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