मेघनाथ वध | Meghnath Vadh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही आवक. निवेदन ष्जू सामने आादु् थे ही; फिर वे क्यों “घड़े सुद्दाग' में अपनी कविता- कामिनी को सुछाते ? उन्होंने देवा कि मित्राच्र छुन्द के कारण कविता के स्वाभाविक अरवाह को धक्का ठगता है । प्रत्येक चरण के अन्त में ्वासपतन के साध साथ भाव पूरा करना पढ़ता है । इससे एक ओर 'जिस तरद्द भाव को सद्लीणं करना पढ़ता हैं, उसी तरह दूसरी भोर भाषा के यास्थीर्य और कल्पना की उन्मुक्त गति सें भी घाधा पढ़ती है । इसी 'छिए उन्होंने इस श्न्ला को तोड़ कर अपनी भापा में अमित्रात्तर छुन्द की अवतारणा की । उन्दोंने छुन्द की अधीनता न करके छुन्द को ही अपने अधीन बनाया । आरम्भ में लोगों ने उनकी अवन्ञा की; परन्तु आज घदाली उनके नाम पर यार्व करते हैं । वक्किम घाबू ने लिखा है-- _ “यदि कोई आधुनिक ऐश्वय्यंगर्वित यूरोपीय हमसे कहे-- “दुम लोगों के लिए कौनसा भरोसा है ? बद्लादियों में मजुप्य कदछाने लायक कौन उत्पन्न हुआ है ?” तो इस कहेंगे--धघर्स्मॉपदेशकों में श्रीचैतन्यदेव, दार्थिनिकों में रघुनाथ, कवियों में जयदेव और सघुसूदन । “भिन्न सिन्न देशों में जातीय उन्नति के सिन्न भिन्न सोपान होते हैं । विद्याठोचना के कारण ही प्राचीन भारत उन्नत हुआ था । उसी सा से चलो, फिर उन्नति होगी । # ख् क्र शक अपनी जातीय पताका उड़ा दो और उस पर लक्चित करो-- *श्ीमघुसूदन (” सुप्रसिद्ध महात्मा परसहंस रामकृप्ण देव ने मघुसूदन के विपचक्षियों को लक्ष्य करके जो कुछ कहा था, उसका अनुवाद नीचे दिया जाता है- “तुम्हारे देश में यह एक अद्भुत प्रतिभाशाली पुरुप उत्पन्न छुआ था । सेघनाद-नघ जैसा काव्य तुम्हारी चज्भापा में तो है ही नहीं, भारतवपं में भी इस समय ऐसा काव्य दुठंभ है | तुम्हारे देद में यदि




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