मेघनाथ वध | Meghnath Vadh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही आवक.
निवेदन ष्जू
सामने आादु् थे ही; फिर वे क्यों “घड़े सुद्दाग' में अपनी कविता-
कामिनी को सुछाते ? उन्होंने देवा कि मित्राच्र छुन्द के कारण कविता
के स्वाभाविक अरवाह को धक्का ठगता है । प्रत्येक चरण के अन्त में
्वासपतन के साध साथ भाव पूरा करना पढ़ता है । इससे एक ओर
'जिस तरद्द भाव को सद्लीणं करना पढ़ता हैं, उसी तरह दूसरी भोर भाषा
के यास्थीर्य और कल्पना की उन्मुक्त गति सें भी घाधा पढ़ती है । इसी
'छिए उन्होंने इस श्न्ला को तोड़ कर अपनी भापा में अमित्रात्तर
छुन्द की अवतारणा की । उन्दोंने छुन्द की अधीनता न करके छुन्द को
ही अपने अधीन बनाया । आरम्भ में लोगों ने उनकी अवन्ञा की; परन्तु
आज घदाली उनके नाम पर यार्व करते हैं । वक्किम घाबू ने लिखा है--
_ “यदि कोई आधुनिक ऐश्वय्यंगर्वित यूरोपीय हमसे कहे--
“दुम लोगों के लिए कौनसा भरोसा है ? बद्लादियों में मजुप्य कदछाने
लायक कौन उत्पन्न हुआ है ?” तो इस कहेंगे--धघर्स्मॉपदेशकों में
श्रीचैतन्यदेव, दार्थिनिकों में रघुनाथ, कवियों में जयदेव और सघुसूदन ।
“भिन्न सिन्न देशों में जातीय उन्नति के सिन्न भिन्न सोपान
होते हैं । विद्याठोचना के कारण ही प्राचीन भारत उन्नत हुआ था ।
उसी सा से चलो, फिर उन्नति होगी । # ख् क्र शक
अपनी जातीय पताका उड़ा दो और उस पर लक्चित करो--
*श्ीमघुसूदन (”
सुप्रसिद्ध महात्मा परसहंस रामकृप्ण देव ने मघुसूदन के विपचक्षियों
को लक्ष्य करके जो कुछ कहा था, उसका अनुवाद नीचे दिया जाता है-
“तुम्हारे देश में यह एक अद्भुत प्रतिभाशाली पुरुप उत्पन्न छुआ
था । सेघनाद-नघ जैसा काव्य तुम्हारी चज्भापा में तो है ही नहीं,
भारतवपं में भी इस समय ऐसा काव्य दुठंभ है | तुम्हारे देद में यदि
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