आर्य्य - जीवन और गृहस्थ - धर्म्म | Aaryy Jivan Aur Grihastha Dharmm
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
103
श्रेणी :
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No Information available about श्री रघुनाथ प्रसाद पाठक - Shri Raghunath Prasad Pathak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गृहख्व-घम्से [ ९
मनोरथ करे । स्त्री रानी बनकर उत्तम पुत्र पैदा करे श्रौर पति को
प्राप्त होकर शोभा प्राप्त करे ' ।
एक दूसरी जगह कन्याश्यों को जष्चचय्य का पालन करके युवा
पति के साथ विवाह करने की शिक्षा दी गई है* । अथात् जिस
प्रकार अ्ह्मचय्ये का ब्रत पुत्रों के लिए आवश्यक है उसी प्रकार
न्रझ्मचय्य का ब्रत पुत्रियों के लिए भी आवश्यक है ।
'अथवंवेद ३ । २५. । ४ में खियों में इन गुणों के होने का
विधान किया गया है:--
सूद, निमन्यु ( क्रोध रहिस ) प्रियवादिनी, अनुघ्रता ( पति के
ब्रत में सम्मिलित होने वाली ( क्रती असः ) पति के कार्यों में
सद्दायता देने वाली * ।
अथवं० १ । १४। १०४ में उन्हें कन्या ( कमनीया ) कुलपा,
( ते पत्यु: भगम् ) अथात् पति का ऐश्वय कहा है” ।
. अथववेद [ १ । २७। ४ ] में खियों के नेठृत्व का इस प्रकार
वणन है:--
इन्द्राण्येतु प्रथमा :्जीता5मुधिता पुरः ।
अथोत्--जिसे कोई जीत न सके, न कोई छूट सके, ऐसी
१. इयमपभ् नारी पति विदेश सोमो हि राजा सुभगां कणोति ।
सुवाना पुत्रान् महिपी भवाति गत्वा पर्ति सुभगा विराजतु ॥।
. अथववेद रे । ३९३ । ३ ॥
२. अथववेद ११ 1 ५ । १८
३. सदुर्निमन्युर केवली प्रियवादिन्यनघता ॥ अथव ३। ५ । ४ ॥।
४ (१) 'एपाते राजस कन्या घभूः ' ॥ (२) “ एवाते कुलषा राजम्' ॥
(३) ' अपि नझ्ामि से भगमू ॥ [ अथव० १1१७४। सर, दे, थे ॥।
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