आर्य्य - जीवन और गृहस्थ - धर्म्म | Aaryy Jivan Aur Grihastha Dharmm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गृहख्व-घम्से [ ९ मनोरथ करे । स्त्री रानी बनकर उत्तम पुत्र पैदा करे श्रौर पति को प्राप्त होकर शोभा प्राप्त करे ' । एक दूसरी जगह कन्याश्यों को जष्चचय्य का पालन करके युवा पति के साथ विवाह करने की शिक्षा दी गई है* । अथात्‌ जिस प्रकार अ्ह्मचय्ये का ब्रत पुत्रों के लिए आवश्यक है उसी प्रकार न्रझ्मचय्य का ब्रत पुत्रियों के लिए भी आवश्यक है । 'अथवंवेद ३ । २५. । ४ में खियों में इन गुणों के होने का विधान किया गया है:-- सूद, निमन्यु ( क्रोध रहिस ) प्रियवादिनी, अनुघ्रता ( पति के ब्रत में सम्मिलित होने वाली ( क्रती असः ) पति के कार्यों में सद्दायता देने वाली * । अथवं० १ । १४। १०४ में उन्हें कन्या ( कमनीया ) कुलपा, ( ते पत्यु: भगम्‌ ) अथात्‌ पति का ऐश्वय कहा है” । . अथववेद [ १ । २७। ४ ] में खियों के नेठृत्व का इस प्रकार वणन है:-- इन्द्राण्येतु प्रथमा :्जीता5मुधिता पुरः । अथोत्‌--जिसे कोई जीत न सके, न कोई छूट सके, ऐसी १. इयमपभ् नारी पति विदेश सोमो हि राजा सुभगां कणोति । सुवाना पुत्रान्‌ महिपी भवाति गत्वा पर्ति सुभगा विराजतु ॥। . अथववेद रे । ३९३ । ३ ॥ २. अथववेद ११ 1 ५ । १८ ३. सदुर्निमन्युर केवली प्रियवादिन्यनघता ॥ अथव ३। ५ । ४ ॥। ४ (१) 'एपाते राजस कन्या घभूः ' ॥ (२) “ एवाते कुलषा राजम्‌' ॥ (३) ' अपि नझ्ामि से भगमू ॥ [ अथव० १1१७४। सर, दे, थे ॥।




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