रवीन्द्र कालिया की कहानियाँ | Ravindra Kaliya Ki Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
83 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हूं। मेरा विश्वास है कि कभी तेज लिखने की प्रतियोगिता हो तो मैं प्रथम आऊँ। विवाह के बाद
जल्दी लिख लेना मेरे लिए जरूरी भी हो गया है। फिलहाल जीवन का प्रधान भाव है, हड़बड़ी! बच्चे
के जग जाने की, कॉलेज पहुँचने में देर हो जाने की, नल चले जाने की, दुकानें बन्द हो जाने की-
मेरा समस्त साहित्य इसी हाय-हाय के बीच से गुजरा है । रवि का खयाल है महत्वपूर्ण कहानीकार
ऐसे नहीं लिखते । मेरा खयाल है जन्मजात रचनाकार कैसे भी लिख लेते हैं, जेल से लेकर रेल तक
में । मगर रवि का लिखना हम सब के लिए बेहद उबाऊ है। वह लिखेंगे तो सारे घर-बार से कट
जायेंगे। न किसी से बात, न सरोकार । जैसे परीक्षा केन्द्र में सवाल न कर पा रहे हों । मगर कहानी
खत्म होते ही चेहरे पर रौनक आ जायेगी, कहेंगे, 'चलो यार किसी अच्छी जगह खाना खा आयें.
लौट कर फिर वही मनहूसियत, “मुझे लगता है कहानी एक बार फिर लिखूँ... जिस दिन हमारी
शादी हो रही थी, मेरे कुछ हितैषी मेरी एक कविता अतिथियों को पढ़ाते घूम रहे थे, “प्यार शब्द
घिसते-घिसते चपटा हो गया है, अब हमारी समझ में सहवास आता है।' हितैषियों का एक वर्ग
अन्तिम क्षण तक रवि को इस रिश्ते की बेवकूफी समझाने की कोशिश में लगा था, एक वर्ग मुझे
प्रेम का प्रतिशत तो ब्याज की तरह निकालना आसान नहीं है, लेकिन उनके लाभ के लिए
मैं वे कुछ शिकायतें जरूर बताना चाहूँगी जो मुझे रवि से हो गई हैं, बावजूद प्यार मुहब्बत के ।
नम्बर एक- रवि मेरे लेखन के प्रति बड़ा ठंडा दृष्टिकोण अपनाए रहते हैं । मुझे शक है
इस आदमी ने मेरी कोई भी रचना कभी भी पढ़ी होगी । जब मेरे उपन्यासों पर पाठकों के पत्र आते
हैं तो ये ताज्जुब करते हैं कि क्या ये किताबें पाठ्यक्रम में लगी थी जो उन्हें पढ़नी पड़ गईं।
.... नम्बर दो- रवि ने बेटे को सिर चढ़ा रखा है।
तीन- रवि की खाने में कम पीने में ज्यादा दिलचस्पी रहती है।
चार- रवि कभी सिनेमा नहीं दिखाते ।
पाँच- रवि कभी शापिंग नहीं करते। जब हमारे कपड़े तार-तार हो जाते हैं तो हम दोनों के
हमदर्द घरवाले कपड़े सिलवा देते हैं ।
छह- कहाँ तक गिनाऊँ फेहरिस्त बड़ी लम्बी है।...
4 ममता कालिया
(१२.१२.७६)
कुछ और रवि
औरों के लिए वे होंगे रवीन्द्र कालिया । मेरे लिए तो रवि हैं । बात-बात में ठहाके, गणें और गल्प।
उनके साथ रहते मुझे तीन दशक हो गए पर कहानी पर, जीवन पर, राजनीति पर उनकी दृष्टि
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