षट पाहुड ग्रन्थ | Shat Pahud Granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९)
- चख्रादि चाहा पेंरिग्रद रहिंत भाव चारिंत्र दन्य भी बन्दने योग्य नहीं
है, दोनों समान हू इन में कोई भी संयमी नद्दी हें। ,.
भावाथे--यदि कोइ अधमा पुरुष नगा हा जावे तो चह वन्दने
योग्य नहीं है और जिस का संयम नहीं है वद्द तो बन्दने योग्य है.
हा नंहां। . ,
वि देंहो वंदिज्ईं णविंयं' कुठों णर्विय जीईं.सेंजुत्तो ।
को बंदेषि गु्णहींणा णंहूँ'सबणों णेयसावओ दाइ ॥२७॥।
नापि देहों वन्यंते नापिचे कुंठे नॉपिच जाति संयुक्तमू ।
कंचन्द गणहीनस् नव श्रवणों नव श्रावका भमवातिं ॥
अथे--न देह को बन्दना की जाती है नकुछ को न जाति को,
गुण हीन में किस को वन्दना करें, क्योंकि शुण हीन न तो सुनि है
और न श्रावंक है ।
'वंदामि तब सामण्णां सीलेंच गुणंच वंभ चरंच ।
सिद्धंगमणंच तेर्सि संम्पतेण सुद्ध भावेण॑ ॥२८।।
_ बन्देतपः समापन्नाम् शीछच गुणंच ब्रह्मचर्यच । -
। सिद्ध गमनंच तेपाम् सम्यक्त्वेन झुद्ध माविन ॥
अथे--में उनको रुचि सदित शुद्ध भावों से बन्दना करता हूं
जा पूण तप, करत हु; मं उनके दाल को शुण को और उनकी सिद्ध
गात को भी बेन्दना करता हूं--
#७ ; ह९
चउसट्रंचमरंसहिओं चउर्तासहिंअइसएईिं संजुंचो ।
अणवार वहु सत्ताहिओं कंम्पकंखय कारण णिपिंत्तो ।२९॥।
चतुः पष्टि चमर सहितः चर्तीरस्त्रशदातिशये! संयक्तः ।
अनवरतवहुसत्वाहेतः कर्मसयकारण' निर्मित्तमू ॥।
ष
अंथ--जों चोसठ ६४ चमरों साहत, चातास ३४ अतिद्यय
संयुक्त निरन्तर बहुत प्राणियों 'के हितकारी और कर्मों के क्षय होने
का कारण हैं। +:
श
ह
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