जीवन - निर्वाह | Jeevan - Nirwah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ मनुष्यका' मलुष्यत्व । सर उचित रीतिसे काममें ठावे और उनका कभी दुरुपयोग न. करे | इन शक्तियोंक दुरुपयोग अथवा चुरी तरह काममें लानेकी बात हमने इस डिए कही है कि इनके द्वारा हानि और छाभ दोनों हो सकते हैं | यदि दम श्क्तिका सदुपयोग करें अर्थात उसे अच्छे काममें लगावें तो उससे हमको छाभ होगा, और यदि हम उसका दुरुपयोग करें-उसे बुरे काममे छगावें तो उसके द्वारा हमें हानि पहुँचेगी । जँसे आगसे रोटी बनाई जावे, या लोहा, पीतल आदि गलाकर चनैन बनाये जावें, या सोना चौददी गठाकर जेवर था सिक्के बनाये जायेँ, या एंजिन चनाकर उससे रेठ्गाडियीँ और अनेक तरहके कारखाने चलाये जायँ, तो हम कहेंगे कि थागका सदुपयोग किया गया हैं और उससे छामहीकी संभावना होगी; परन्तु यदि उसी गके द्वारा छोगोंक्षे घर जाये जायेँ, वन्दूक अथवा तोपके द्वारा गोले फेंककर मनुष्योंक्ा नाश किया जाय तो यह उसका दुरुपयोग कहलातरेगा और उससे हानि ही हानि होगी । मनुष्यको अपना मनुष्यत्व स्थिर रखनेके लिए,अपना मानगीकर्तेव्य पाठन करनेके छिए, अपनी इन तीनों शक्तियोंका सदुपयोग करना चाहिए । यही नहीं, बल्कि हजारों छाखों-वर्षेसे मिठनेवाछे मनुष्योंके अनभवजन्य ज्ञान-भाण्डारका ऋण चुकानेको ढिए जहाँ तक हो सके. उसे सं भी कुछ उन्नति करके दिखलानी चाहिए या कोई नवीन 'बस्तु बनानी चाहिए; पुरानी तर्कीत्रों, पुरानी कारीगरियों और पुरानी रीतियोंति बढ़िया कोई नवीन तर्कीव कारीगरी या रीति निकाठकर उसे सर्वसाधारणमें प्रकट करनी चाहिए। इन नह नई खोजों या तर्कीवोंकी छिपाना मानों मजुष्यजातिकी उन्तिके मार्गमें बाधा पहुँ- चाना है | परन्तु अपनी बुद्धिको कभी ऐसी बातोंके सीखने सिखाने या ऐसी किसी बात या तर्वीबके निकाछनेमें न ठगानी चाहिए जिससे मनुष्य ज़ातिकी हानि होती हो या. मनुष्यके मनुष्यत्वमें 'फर्क आता




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