प्राचीन जैन स्मारक | Prachin Jain Smark

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धर्म दिवाकर - Dharm Divakar

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शीतला प्रसाद - Sheetala Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) गुफायें भी हैं । इनपरसे अब या तो जैनघमेकी छाप ही उठ गई या जेनियोंने उनको सवेधा मुखा दिया है । ऊपर हमने नो बातें कहीं हैं उन सबके प्रमाण प्रस्तुत पुस्त - कमें पाये जांयगे । धमहितैषी और उपस' हार । जैन इतिहासके प्रेमियोंको इस पुस्त- कका अच्छी तरह अवलोकन करना चाहिये इससे उनको अपना प्राचीन गौरव विदित होगा और अपने अधःपतनके कारण सूझ पड़ेंगे। उनको यह बात नोट करना चाहिये कि कहां२ पुराने जेन मंदिर व मंदिरोंके ध्वं- सावशेष हैं, कहां जेनमंदिर दौवमंदिरों ओर मसजिदोंमें परिवर्तित कर लिये गये हैं और कहां२ जैन गुफायें अरक्षित अवस्थामें हैं । जिनको भ्रमण करनेका अवसर मिले वे उक्त स्थानोंको अवश्य देखें और तत्सम्बंधी समाचार प्रकाशित करावें | बम्बई प्रांतमें अनेक स्थानों जेसे पाटन, ईडर भादिमें बड़े प्राचीन शास्त्र भंडार हैं । इनका सुकष्म रीतिसे शोध होना आवश्यक है । भारतवषके जैनि- योंकी लगभग आधी जन संख्या बस्बई प्रांतमें निवास करती है । इन भाइयोंक्रा सर्वोपरि कतेव्य है कि वे इस पुस्तककी सदायतासे अपने प्रांतडी धार्मिक प्राचीनताको समझे और जेनघमेके पुनरुत्था- नमें भाग हें । पुस्तकके लेखकका यही अभिप्राय है ! गांगई। हीरालाल कार्तिक वदी ३०. * [ हीराछाल जैन एम ० ए० सं « प्रोफेसर नि. सं. ९४५१ किंग एडवड कालेज अमरावती-बरार ]




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