प्राचीन जैन स्मारक | Prachin Jain Smark
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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धर्म दिवाकर - Dharm Divakar
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शीतला प्रसाद - Sheetala Prasad
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
गुफायें भी हैं । इनपरसे अब या तो जैनघमेकी छाप ही उठ गई
या जेनियोंने उनको सवेधा मुखा दिया है ।
ऊपर हमने नो बातें कहीं हैं उन सबके प्रमाण प्रस्तुत पुस्त -
कमें पाये जांयगे । धमहितैषी और
उपस' हार । जैन इतिहासके प्रेमियोंको इस पुस्त-
कका अच्छी तरह अवलोकन करना
चाहिये इससे उनको अपना प्राचीन गौरव विदित होगा और
अपने अधःपतनके कारण सूझ पड़ेंगे। उनको यह बात नोट
करना चाहिये कि कहां२ पुराने जेन मंदिर व मंदिरोंके ध्वं-
सावशेष हैं, कहां जेनमंदिर दौवमंदिरों ओर मसजिदोंमें परिवर्तित
कर लिये गये हैं और कहां२ जैन गुफायें अरक्षित अवस्थामें हैं ।
जिनको भ्रमण करनेका अवसर मिले वे उक्त स्थानोंको अवश्य देखें
और तत्सम्बंधी समाचार प्रकाशित करावें | बम्बई प्रांतमें अनेक
स्थानों जेसे पाटन, ईडर भादिमें बड़े प्राचीन शास्त्र भंडार हैं ।
इनका सुकष्म रीतिसे शोध होना आवश्यक है । भारतवषके जैनि-
योंकी लगभग आधी जन संख्या बस्बई प्रांतमें निवास करती है ।
इन भाइयोंक्रा सर्वोपरि कतेव्य है कि वे इस पुस्तककी सदायतासे
अपने प्रांतडी धार्मिक प्राचीनताको समझे और जेनघमेके पुनरुत्था-
नमें भाग हें । पुस्तकके लेखकका यही अभिप्राय है !
गांगई। हीरालाल
कार्तिक वदी ३०. * [ हीराछाल जैन एम ० ए० सं « प्रोफेसर
नि. सं. ९४५१ किंग एडवड कालेज अमरावती-बरार ]
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