भूदान - गंगोत्री | Bhudan Gangotri

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Bhudan Gangotri by दामोदरदास मूँदड़ा - Damodardas Mantra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रासनवमी का प्रसाद श देनेवाला सहसों श्रोताओं का वह दशन स्वय परम पावन था! ऐसा प्रतीत होता था कि हरएक के हृदय पर आज के इस पुण्य-दिवस की स्मृति अट्छ रहनेबाली है । स्वय विनोबाजी को भी ऐसी हो प्रतीति हो रही थी | “पुक्ते तो आज के इस परम पवित्र दिवस की याद बहुतु दिन रहने- वाली है ।” और उन्होंने कारण भी बताया : “क्योकि हमारे कुछ भाई; जो कि देश की सेवा करना चाहते है, लेकिन जिन्होंने एक दूसरा ढग अख्तियार किया है, और जो कम्युनिस्टो के नाम से दुनिया में पुकारे जाते है; तथा आज जेलो से है--उनसे आज मुक्ते मुलाकात करने का मौका मिला और मुक्ते इस बात की खुशी हुई है कि उन लोगों के साथ टो घटे दिल खोलकर बात हुई । मै मानता हूँ कि यह रामनवमी का प्रसाद सुकते सेवन करने को मिला है ।” सच्ची दृष्टि जिनको दुनिया दुश्मन समझती हैं, जो 'वास्तव में कितने ही खून और हत्याओ के लिए. जिम्मेवार माने जाते है, उनके छिए भी सर्वोदय- समाज के इस सेवक के हृदय में कितना प्यार भरा है । उनके उस भापण मे ही उसकी कारण-मीमासा भी हम पाते है : “सर्वोदय में सबकी चिता आती है; तो कम्युनिस्ट भाई भी मेरी चिता के विषय हैं और मैं जरूर चाहूँगा कि उनको समझा सकूँ, उनको जीत संकूँ । और अगर भगवाच्‌ ने चाहा, तो वे भी सर्वोदय-विंचार के प्रेमी हो सकते है । जो उसकी इच्छा होगी; वही होगा । इस सबंध में हम अपने पास कोई अह्कार नहीं रख सकते । लेकिन हमारा कोई फर्ज है। मैं तो अपना फर्ज समभता हूँ कि हरएक के साथ दिल्‍ली परिचय कर लूँ । हरएक के साथ एकरूप होने की कोशिश करूँ । हरएक की तरफ उस निगाह से देखें, जिंस निगाह से वह खुद अपनी तरफ देखता है! अपनी निंगाह से दूसरों को देखना; न देखने के समान है । उन-उन मनुष्यों




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