हिन्दी के अर्वाचीन रत्न | Hindi Ke Arvachin Ratn

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Book Image : हिन्दी के अर्वाचीन रत्न  - Hindi Ke Arvachin Ratn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मारतेन्दु बादू हरिदिचन्दर छ भारतेन्दु जी दल्लमीय सम्प्रदाय से सम्बन्प रखते डूए भी सकीणं विचार के ध्यक्ति मही थे, वरनू उनमें उदाराययता थी । उन्होनें इप्दा के भविरिक्त 'सीता-बल्तन-्दोव में राम की स्तुति बी है शोर “*रामपीसा' में राम को सीसा वा वर्णन किया है 1 इनका सरस हृदय रमिकराज इप्णा पर भधिक मुग्य था दयापि ठिसी अन्य सम्प्रदाय से तनिक नी दंप नहीं पा । राम की स्तुति तो इन्होंने बी ही है, जैन भादि मर्तों में बधिठ दातों को मी वे बडे दिशिल दृष्टिकोण से देगते थे । 'जैननुनूदून नामक प्रस्थ में वे प्ररदत ऋषपम एवं पारवगाप को उसी ईर्दर वा सूप मानते है पियारे डूनों को घरहेंत । है शर्ट जप जय जपति ऋषस भगंदान । जगत ऋषभ मुप ऋषभ परम के ऋयन पुरान प्रमान 0 श्र श्र श्द सुमहि तो पाइरपनाप हो प्यारे । इस प्रार जैन तीयंकरो के य्रठि सी ये झपनी भास्या प्रदर्शित बरते है भौर उन्हें हो नहीं, समार में भववरित समी देवद्रवीं वो उसी का रुप भानते है हो सु बहु दिपि रुप परो 1 वे न परम में प्रगट दियों सुम दया धर्म सगरी” कह गर मनी को दया को मी उसी एक ईयर की देन मानते है । घपनी उदारागपता भोर वाग्ठजि हसपरदशिया का परिचय देते हुए ये बहठे है दिन माहि ईइररता भटशो देद में । हयरण कोई वेद में ही है ऐसी बात सहीं । यट सभी पर्ों में शिदमान है। स्पनभेद पवश्य है परन्तु वास्तव में कोई धस्तर नहीं । वे “पेन धर्म को मास्तिक भाग बौत' बहू गर जनों को सास्तिग अटनते वासों को भरसित करते ट् तथा 'हरितना ताइयमानो पंप ने गस्देत जैन सन्दिरमू' बहने बासों को निस्त दंग में घू्ग बताते हे बात को सुर को यह मानो । हाथी मार तोह गरहों डिन-मर्दिर में शातों ॥ इस प्रहार हस सारवेर्पु जो को रघतापों से उनको सहि, ददाराययता हद गमरदयारिता को सजी-्मरजि जात सर हे है।




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