शाहजहाँ | Shahajahan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३
छोड़ जाता है । पियारा जब * शेरकी ताकत दाँतोंमें, हाधीकी ताकत सैंइमें
आदि उपमाएँ देनेके पश्चात कहती है कि “ हिन्दरस्तानियोंकी ताकत पीठमें
और जयसिंह जब कहते हैं कि ' मे श्रौरंगजबकी अधीनता स्वीकार कर
सकता हूँ मगर राजसिहका प्रभुत्व नहीं मान सकता * आर इसके उनरमें
जव जसवन्तसिंद पूछत हैं कि * क्यों राजा साहब, वब्यपनी जातिके हैं,
इसीलिए १ ' और पियारा जब कहती है कि मे रिहाई नहीं चाहती । मुझे
यह गुलामी ही पसन्द है।' तथा शजा इसका उत्तर देता है ' छिः
पि्ारा, तुम हिन्दुस्तानियोंसे भी नीच हो,' * तब कौतुककी हैँसी आओछोंमें
ही मिल जाती है और ग्राण मानो एक तज कोइकी मारसे कौंप उठते हैं ।
इतिहासकी बात छोड़ दनेपर हम दखत हैं कि शाहजहाँ नाटकके सभी
प्रधान-अपरधघान चरित्र सुपरिस्फुटित हैं । परस्पर विपरीत प्रकृतिके पात्रों के
चिन्नोंका' पास रखकर नाय्यकारने एककी सहायतासे दूसरेकी उज्ज्वलताकों
बढ़ाया है । जयर्सिंदकी बविश्वासघातकताके सामने दिलरखौंका धघर्मज्ञान
जिहनखेंकी नीचताके सामने शाहनवाजकी उदारता और जसवन्तसिहकी
सकीरताके सामने मदामायाके मनका महत्त्व, ये सब बातें काले परदेपर
सफेद रंगके चित्रोंके समान उज्ज्वल ही उठी हैं ।
मरुभूमि्मं प्याससे व्याकृत स्त्री-पुत्रोंकी दासन्न सत्युकी आशंकास
दाराका भगवानके निकट प्राथना करना, उसके थोड़ी ही देर पीछे गऊ
चरानेवारलाका आना और जल पिलाना, जयसिहसे सन्य न पाकर दुखी
हुए सुलमानका दिलरखासे सटायताकी भिक्ता मौगना दर दिलरखंसे,
जिसकी ्राशा नहीं थी, एसा तजस्वी उत्तर मिलना कि * उठिए शादजादा
साहब, राजा साहब न दें, म हुक्म देता हूं। मेने दाराका नमक
खाया है ।. मुसलमार्नाकी क्ौम नमकइराम नहीं होती । '. मुह-
म्मदका शाहजडका दिया हुआ मुकुठ न लकर चला जाना, युद्में
पराजित द्ोकर शुजा और जसबंतके राज्यमें लोटनेपर महामायाका फाटक
बंद करवा देना, पियाराका युद्धच्षेत्रमें जाकर मरनेका संकल्प प्रकट करना
* हमारे पास षष्र सस्करणकी मूल पुस्तक है । उसमें यह वाक्य
नहीं है । जान पड़ता है, यह पहलेके संस्करणमें रहा होगा, पीछे किसी
कारणसे निकाल दिया गया है ।
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