शाहजहाँ | Shahajahan

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Shahajahan by द्विजेन्द्रलाल राय - Dwijendralal Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ छोड़ जाता है । पियारा जब * शेरकी ताकत दाँतोंमें, हाधीकी ताकत सैंइमें आदि उपमाएँ देनेके पश्चात कहती है कि “ हिन्दरस्तानियोंकी ताकत पीठमें और जयसिंह जब कहते हैं कि ' मे श्रौरंगजबकी अधीनता स्वीकार कर सकता हूँ मगर राजसिहका प्रभुत्व नहीं मान सकता * आर इसके उनरमें जव जसवन्तसिंद पूछत हैं कि * क्यों राजा साहब, वब्यपनी जातिके हैं, इसीलिए १ ' और पियारा जब कहती है कि मे रिहाई नहीं चाहती । मुझे यह गुलामी ही पसन्द है।' तथा शजा इसका उत्तर देता है ' छिः पि्ारा, तुम हिन्दुस्तानियोंसे भी नीच हो,' * तब कौतुककी हैँसी आओछोंमें ही मिल जाती है और ग्राण मानो एक तज कोइकी मारसे कौंप उठते हैं । इतिहासकी बात छोड़ दनेपर हम दखत हैं कि शाहजहाँ नाटकके सभी प्रधान-अपरधघान चरित्र सुपरिस्फुटित हैं । परस्पर विपरीत प्रकृतिके पात्रों के चिन्नोंका' पास रखकर नाय्यकारने एककी सहायतासे दूसरेकी उज्ज्वलताकों बढ़ाया है । जयर्सिंदकी बविश्वासघातकताके सामने दिलरखौंका धघर्मज्ञान जिहनखेंकी नीचताके सामने शाहनवाजकी उदारता और जसवन्तसिहकी सकीरताके सामने मदामायाके मनका महत्त्व, ये सब बातें काले परदेपर सफेद रंगके चित्रोंके समान उज्ज्वल ही उठी हैं । मरुभूमि्मं प्याससे व्याकृत स्त्री-पुत्रोंकी दासन्न सत्युकी आशंकास दाराका भगवानके निकट प्राथना करना, उसके थोड़ी ही देर पीछे गऊ चरानेवारलाका आना और जल पिलाना, जयसिहसे सन्य न पाकर दुखी हुए सुलमानका दिलरखासे सटायताकी भिक्ता मौगना दर दिलरखंसे, जिसकी ्राशा नहीं थी, एसा तजस्वी उत्तर मिलना कि * उठिए शादजादा साहब, राजा साहब न दें, म हुक्म देता हूं। मेने दाराका नमक खाया है ।. मुसलमार्नाकी क्ौम नमकइराम नहीं होती । '. मुह- म्मदका शाहजडका दिया हुआ मुकुठ न लकर चला जाना, युद्में पराजित द्ोकर शुजा और जसबंतके राज्यमें लोटनेपर महामायाका फाटक बंद करवा देना, पियाराका युद्धच्षेत्रमें जाकर मरनेका संकल्प प्रकट करना * हमारे पास षष्र सस्करणकी मूल पुस्तक है । उसमें यह वाक्य नहीं है । जान पड़ता है, यह पहलेके संस्करणमें रहा होगा, पीछे किसी कारणसे निकाल दिया गया है ।




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