वृहदद्रव्यसंग्रह | vrihad Dravy Sangrah

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vrihad Dravy Sangrah by विवेकसागर जी महाराज - Vivekasagar Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बालों ने लिखे हैं । खरखरों से प्रकाशित संस्करस में हिन्दी भाषामुवाद कर्ता का नामोल्लेख नहीं है अत: प्रस्तुत संस्करण में भो बहू नहीं दिया जा सका है । इस संस्करण के प्राक्कथन में ब्रत्थमाला के सनी श्री सिखरचन्द जैन ने लिखा है--''इस ग़न्थ के संशोधन-प्रकाशन में बा० ऋषभदास ( मेरठ ), ला० धहूदास, ला० मेह्रचन्द, श्री रतनचन्द मुख्तार व बा० नेमचन्द वकील (सहारनपुर), पं. प्रस्ना- लाल साइहित्याचायें (सागर), पं ० जुगलकिशोर मुख्तार ( वीर सेवा मन्दिर, देहली ), पं० सिखरचन्द शास्त्री (ईसरी), पं० सरदारमल ( सिरोंज ), मेया त्रिलोकचन्द्र ( छातोली ) तथा ब्र० चन्दनमल मे सहयोग दिया है ।” प्रस्तुत संस्करण के प्रकाशन के समय भी हम इन सब महानुभावों के झतीव ऋणी हैं। इस खण्ड के प्रारम्भ में मूल ग्रन्थकार झौर ग्रम्थ का तथा संस्कृत टीकाकार झोर टीका का विस्तृत समीक्षात्मक परिचय दिया गया है भोर विस्तृत विषयानुक्रमरणिका तेयार की गई है । झन्त में लघुद्रव्य संग्रह (अन्वयाथ सहित) और वृहद्द्व्यसंग्रह की गाधासूची दी गई है । प्रभाचख कृत लघुन्रहमदेवधत्ति : वृहद्दव्यसंय्रह पर झद्यावधि एकमात्र संस्कृतटी का श्रीब्रह्मदेव कृत 'वृत्ति' हो उपलब्ध थी परन्तु परम पूज्य १०८ धभीक्सशानोपयोगी सुनिराज झजितसागरलों महाराज के अनुप्रह से भट्टारक प्रभाचन्द्र कृत संक्षिप्त वृत्ति भी हमें प्राप्त हुई है । भ्रन्त में उसका भो प्रकाशन किया जा रहा है । स्वेयं भट्टारक प्रभाचन्द्र ने इसे 'लघुब्रह्मदेववृत्ति' कहा है । पं० नाथू- रामजी प्र भो ने “जैन साहित्य श्रोर इतिहास' (पृ० २०) पर प्रभाचन्द्र कृत एक द्रव्यसंग्रहपजिका का उल्लेख किया है । सम्भवत: वह घंजिका यही हो । मुनिश्नी को प्राप्त हस्तलिखित प्रति की प्रतिलिपि झाधिका बिशुद्धमती माताजी ने दो कापियों में की है । उसी से इसका मुद्रण सम्भव हुभा है । हम मुनिश्नी व श्राथिकाश्रो दोनों के कृतज्ञ हैं । झाभार : ग्रन्यप्रकाशन भ्रकेले व्यक्ति का काम नहीं, इसमें श्रनेक महानुभावों का सकिय सहयोग रहता है । प्रस्तुत प्रकाद्यन में मागेदशेन व सहयोग देने वाले, श्रद्धांजलि संस्मरणण लिखने वाले व रथ प्रदान करने वाले सभी सऊ्जनों का मैं भ्रत्यन्त भ्रनुगृहीत हूँ । सर्वप्रथम भ्राचायंकल्प शी श्रुतसागरणी महाराज के अ्रमुखह को भ्रपेक्षा करता हुम्रा उनके श्री चरणों में सविनय नमोस्तु निवेदन करता हूँ जिनकी प्र रणा से ही “वहुदुद्ब्यसंग्रह' का प्रकाशन हो सका है । स्वर्गीय पूज्य सहदाराजश्री की संघस्था झायिका पृथ्य १०४५ विशालमती माताओं एवं पूज्य झाधिका १०४ थी विज्ञानसतो माताली ने इस यन्थ के सम्पादन का गुदर्तर उत्तरदायित्व मुफे सॉप कर मुक्त पर जो झ्नुय्रह किया है भौर जिनवारणी की सेवा का जो सुभ्वसर दिया है एतदर्थ मैं पूज्य झाथिका दय का कृतश हूं । श्वेताम्बर परिवार में पली-पुसी कुसुमजी ने श्राथिका विशालमती के रूप में दिगम्बर अमण परम्परा्रों को कितनी सुकष्मता से झात्मसात्‌ किया है, यह उनके सम्पर्क में श्राने पर टी ज्ञात हो सकता है । ाधिका विज्ञानमठीजी का स्वास्थ्य कर्मोदय से प्राय; प्रतिकूल ही रहता




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