गीतिका | Geetika

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Geetika by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ चौताल इसमें बारह मात्राएँ होती हैं । इसकी भी कई रचनाएँ इसमे हैं-- मर. वरण-गान वन-वन उपचन-उपवन जागी छवि खुले प्राण । वसन विमल. तन्लु-वट्कल पूथु उर... सुर-पत्लच-दल उउ्ज्वल दृग कलि कल पल निश्चल कर रही ध्यान । दर लड़ी में बारद्द मात्नाएँ हैं। कहीं भी घट-बढ नहीं । गायक आसानी से ताल-विभाजन कर लेगा । वद्द इसे देखते हो इसका स्वरूप पहचान जायगा । तीन ताल इसमें सोलह मात्राएँ होती हैं । लोगों में सोलदद मात्रावाली चीजों का श्धिक प्रचलन है इसलिए इस ताल की रचनाएँ इसमें अधिक हैं-- मघुर-सरण मानसि मन । नू जीवन नित वढ़िम चितवन चित-चारु मरण । या-- ः मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा ? स्तव्ध दग्ध मेरे मरु का तर क्या करुणाकर खिल न सकेगा ? ? कहीं-कहीं सोलह मात्रावाली रचना में भिन्न प्रकार रक्खा गया है। गायक के लिए अड़चन न होगी न पढनेवाले पाठकों के लिए होगी पर जो पाठक ताल के जानकार नहीं वे सम ठीक रखकर गा न सकेंगे । ी




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