मानव धर्म सार | Manav Dharmsaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहा घब् सतत ड्रासकारणास्वेफषणस केश
बचंति बहवस्तत्-'शासकाः परधर्मिणः
अतः समुखिता दिखा दिन्दूधमं न. दीयलें ;
हिन्वूचर्मस्तथा5स्माक... शासकी नेंव रक्यते ;
परेषामेव दोपोस्ति, नाइस्माकं तु कदाचन ।
दोपाइरोपेण किलु-पयं परेषु, नहि नो गतिः ।
इस्तें दासनदक्तिस्त॒ परेषां. परधर्मिणां ;
हिन्दू स्तिरसूकृत्य गता कस्माद् , इति विखुदयतां ।
कारण कारण किन्नु ?; “निदान त्वादिकारण ;”(अ०को०)
हिन्दूघम शासकस्तु यदि-इच्छेदू अपि रक्षितुं ;
किरूप॑ ननु तद्धमें स रक्षेदू ? इति कथ्यतां ।
झातशों शास्य रूपाणि विधदन्ते परस्पर ;
घर्मौ्यं.. पूतिकृष्मांडीकुतः.. स्वाथेपरेजनेः ।
“घ्मे एव हतो हंति, धर्मों रझति रक्षितः ,” (म०)
इति यम्मजुना5दिष्टं, तत्र-एतत् तु विचार्यतां--
अस्ति कि रूप॑ अहतं अद्य घमेस्य हिन्दुषु ?
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना, मिन्नो 'घर्मा' सह यद्दे--
इत्येव डुइषयते 'हिन्दू“-लोके, न तुकथर्मता ।
कि दासकः-तस्य रूप॑ निर्णष्यति-अत्र तास्विक
पक, अन्यानि सवाणि बलाध्याइपाकरिष्यति ?
सवंडिजानां मान्यः कि भविष्यत्येत्र निणयः ?
संघे शक्ति: सदैवा ;सीत्,कलौ सा$स्ति विशेषतः,
अघताराश्य ये ;भूबन्, अतीतेषु युगेध्वपि ,
नाइसहायास्तु ते$प्यासन; ना इस्ति हिंदुषु संघता ।
“अधि चेल् खुकरं कर्म, तद॒प्येकेन दुष्करमू” । (म०)
सदा यने दिना कि स्यात् व्यवस्थितलमा जता
'समं जनाः अ्ज॑त्यस्मिन', समाज धतः स उच्यते ।
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