सामाजिक कुरीतियाँ | Samajik Kuritiyan

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Samajik Kuritiyan by माधव प्रसाद - Madhav Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| सामाजिक कुरीतियाँ ? कला से श्राप्त होता है । मेरे पास इस बात पर विचार, करने का समय नहीं है कि जीवन का अथ क्या है। कृपया मुझे ये सब बातें बतलाइए ।” “मेरे पास इस बात पर विचार करने का समय नहीं है कि. सावेजनिक जीवन के नियम क्या हैं, जिनसे न्याय की रक्ता की जा सके, मुझे यह बतलाइए। मेरे पास यंत्र-विद्या, प्रकृति- दशन, रसायन-शात्र आदि का अध्ययन करने के लिए भी समय नहीं है । सुमे रेसी पुस्तके दीजिए, जिनसे मुभे यह्‌ साल्म हो सके कि मुझे अपने ओजारों में, काम करने के ढंग में, अपने रहने के घरों में तथा उनमें गर्मी और रोशनी पहुँचाने आदि कामों में किस प्रकार सुधार करना चाहिए | सेरे पास इस बात के लिए भी समय नहीं है कि मेँ कव्य-शाख, चित्र-विद्या तथा संगीत- विद्या का भी अध्ययन कर सक्कं । मुमे यह आहाद शौर आनन्द की सामग्री दीजिए, जिसकी जीवन के लिए परमावश्यकता है ।” आप कहते हैं कि हमारे लिए वह उपयोगी तथा आवश्यक काये करना असम्भव होगा, अगर हम उन बातों से वड्म्चित रखे जायंगे जो श्रम-जीवी लोग हमारे लिए करते ङ; परन्तु भ कहता हूँ कि एक मजूर भी यह कह सकता है कि, यदि मुझे; धार्मिक पथ-प्रद्शन न मिला, जो मेरी बुद्धि तथा अन्तः करण को आव- श्यक है; यदि मुझे एक न्याय-परायण सरकार न मिली, जो मेरे परिश्रम की रक्षा कर सक्रे; यदि मुझे वह शिक्षा नहीं मिलती जिससे में अपने काम को आसान बना सकूं; तथा यदि मैं ललित- कला के उपभोग से भी वडिचत रक्खा गया, तो मैं खेत जोतना, तथा शहर की सफाई करना आदि उपयोगी तथा आवश्यक कार्य ,




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