राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्त्रोत | Rajasthan Ke Itihas Ke Pramukh Strot
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ये सूपी ऋषि का शिलालिस (1428 ई ) हि करों
यह लेख 1428 ई का है, णो उनलिंगनो सै+ (भव र्लेकिफ
श गीऋषि नामव स्थान पर लगा हुंध्रा है। इस का रचियता 'केविसान-वरणी विद र
योगीश्वर था । इसको खोदने वाला पन्ना नामव व्यक्ति था, जो हादा पा पुत्र था ।
इसका कुछ भाग सण्डित हो गया है ।
ऐतिहासिक महत्व
(0 इससे पता चलता है कि हम्मीर ने जीलदाडे को जबरदस्ती छीन लिया
तथा पालनपुर को नप्ट घ़प्ट कर दिया । इसके भतिरिक्त उसने भीलों के साथ भी
सफलतापूवक युद्ध लडे एव उसने श्रपने शत्रु जेत्र को भी मौत के घाट
उतार दिया 1
(00 यह लेख सक्ष्मणसिंह भौर क्षेत्रसिह द्वारा गया मे मारो के निर्माण
करवाने तथा उनकी दानवृति पर प्रकाश डालता है ।
8 समिधेश्वर के मदिर का शिलालेख (1428 ई )
यह लेख 1428 ई था है। इसका रचियता एकनाथ था जो कि दशपुर
जाति के भट्टविष्णु का पुत्र था। इसका लेखक वीसल था भौर मा के पुत्र गोविद
ने ्क्ति किया था ।
ऐतिहासिक महत्व
(0 यह उस समय के शिल्पिया के परिवार पर प्रकाश डालता है 1
(ण) इससे पता चलता है कि विष्णु के मा दर का निर्माण मोकल के द्वारा
करवाया गया था ।
(0) महाराणा लाता (लदमणसिंह) ने भोटिंग भट्ट जैसे विद्वानों को उदारता-
पूब प्राश्चय दिया था ।
9 राणकपुर प्रशहिति (1439 ई )
यह लेख राणक्पुर के जैन चौमुख सदिदर मे लगा हुश्रा है धीर 1439 ई
म लिपिवद्ध किया गया था ।
ऐतिहासिक महत्व
(0 इससे पता चलता है कि सुत्रघार दीपा ने राणुकपुर के माददिर का
निर्माण करवाया था 1
(0 इससे हमे बापा से कुम्भा तब की वशावली के बारे मे जानकारी प्राप्त
होती है । इस वशावली म महेद्र एव श्रपराजित श्रादि कई शासकों के नास नहीं
है। इसी प्रकार यह लिखना कि बापा गुहिल वा पुत्र था, सही नही है । इतनी भूलें
होने पर भी यह लेख महाराणा दुम्भा की उपलब्धियों पर प्रकाश डालता है । इससे
पता चलता है कि कुम्भा ने बुदी, गागरोन, नागोर, सारगपुर, चाटसू, श्रजमेर,
मण्डोर भौर कुम्मलगढ़ श्रादि प्रदेशों पर विजय प्राप्त की थी 1
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