मध्यकालीन भारत के प्रमुख इतिहासकार | Madhyakalin Bharat Ke Pramukh Itihasakar

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Madhyakalin Bharat Ke Pramukh Itihasakar by एस॰ एल॰ नागोरी - S. L. Nagori

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र (3) -यायाधीय के सामने प्रम्बुत कर सवना था । प्रयेग्नी षो हिदुग्नो वे कदर रीतिरिवाज बडे भ्रजुये लगे, जिमक्ा वणन उमने ग्रपनी पुन्नकेमकरियाहै जैसे थि हिंदू जब किसी टूसर य्यक्तिके धरम प्रवे करना धातव उस समप उमकी स्वीष्ेति नही लता था प्रतु जात ममय स्वीकृति प्राप्न करता था । 3- धार्मिकं दक्षा 7 ॥ भ्रनयग्नीन निषाद कि उस समय ब्राह्मण धम प्रचलित नहीं था तथारव मत श्र बौद्ध मत वा प्रचलन भी नहीं था । यहा के लोग विप्णु या नारायण की उपासना करते थ । हिंदू ' ईवर' को सृत्टि का रचियता मानते थे । उनरा नातमा एवं पुनजम मे विरेवास था । झ्तयस्नी ने लिखा है दि 'हिडुप्रो का वित्वास था कि स्वग श्रौर नर वी प्राप्ति उनके श्र छे श्रीर बुरे वार्यों पर निभर है। ” हिंदू श्रपनी मुक्ति ते लिय हर सभव प्रयास बरते थे । श्रतयंस्ती ने लिखा है दि “हिंदू श्रपन दवी दवताझा वी श्राराधना करते थे ।” 4' साहित्य एवं विज्ञान श्रत्वेग्नी हिदश्रा कं विधात माहित्य एव विनानवें ग्रथा को देखबर, यत प्रभावित हप्रा । उमन वला तथा प्रय प्रावा प्रःययन किया | ५ पचाति उमन वले नधा पुराणाक् वारम त्रिसाकि “हिदभ्राके पाम विज्ञान वी तमाम वापारो की श्रनको पुस्तके £ । । बोइ इन सबके नाम मसे जान सकना है शरीर खासतौर पर जववि वह हिदून हौ, भपितुण्क विदेशी हो।' श्रलवेर्न॥ न श्रपनी पुम्तक के तिम श्रयायोम हिद ने ज्योतिष एवं खर्गोल शास्त्र बे वार मे बणन किया है। उसने लिखा हैं कि हिंदू झपनी पुस्तकें किसी खास वक्ष कधी पियो पर लिखा करते ये जिसके पवी कहा जाता था । १ ¶ ५ ॥ 1 ‡ ॐ है 4४ 4 श्रलवेष्नी नं विष्णु पुराण, रामायण महभाग्त, विष्णु धम, वराह- मिहीर, भ्रायभट्ट झाटि बी पुस्तफो वा वशन्‌ क्या है । उसने दुश्च उन्हरण पीता स भी दिय हैं । 1 + 1 ॥ 1 5~ स्यापत्य कला ` अ्रलबेदनी मुंसलमान होने के कारण उसवी बला के प्रति निशेष स्वी ही




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