महात्मा गाँधी अभिनन्दन ग्रन्थ | Mahatma Gandhi Abhinandan Granth

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Mahatma Gandhi Abhinandan Granth  by जवाहरलाल नेहरू - Jawaharlal Neharu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.सर एस. राधाऊुंष्णन्‌ श्७ यह-है कि इनसे यदि मनुष्य की किन्हीं अन्तनि हित भावनाओं. का प्रकाशन नहीं होता तो इनकी कल्पना ही क्यों की गई ?? जितना आप प्रेम करेंगे, उतने ही आप सहिष्ण बनते जायेंगे । अनन्त प्रेम का अर्थ. है अनन्त सहिष्णुता । “जो कोई अपना जीवन बचावेगा वह उसे खो बैठेगा ।” हम यहाँ ईइवर का काम कर रहे हैं । हमें अपने जीवन का उपयोग उसकी इच्छाओं की पुरत्ति के लिए करना है । यदि हम ऐसा नहीं करते, और अपना जीवन खचंने की बजाय उसे बचाने का प्रयत्न करते हूं, तो हम अपनी प्रकृति के विपरीत आचरण करते और अपने जीवन को खो देते हैं । यदि हमें जहाँतक हमारी दृष्टि जा सकती है वहाँतक पहुँचने के योग्य बनना हो, यदि हमें दूरतम की पुकार पर अमल करना हो, तो हमें सांसारिक अभिलाषा, यद्य, सम्पत्ति और एन्द्रियिक विषयों का परित्याग करना ही पड़ेगा । निर्धेतों और जाति-बहिष्कृतों से एकता प्राप्त करने के लिए हमें भी वैसा ही निधन तथा बहिष्कृत बनना पड़ेगा । नित्दा-प्रशंसा की परवा न करके, सत्य कहने तथा करने में और सबके प्रति प्रेम तथा क्षमा का बर्ताव करने में स्वतन्त्र होने के लिए, वैराग्य की परम आवश्यकता है । स्वतन्त्रता (मुक्ति) उन बन्धन-रहितों के लिए हूँ जो तृण-मात्र का भी स्वामी हुए बिना निखिल जगत्‌ का उपभोग करते हूं । इस सम्बन्ध में गान्धीजी संन्यासी के उस उच्च आदशं का पालन कर रहे हैं जो उसे कहीं भी टिककर रहने और जीवन की कोई भी एक प्रणाली स्वीकार करने की इजाज़त नहीं देता । परन्तु जब कभी तपदचर्या के इस मार्ग पर पूर्णतया अमल करने का उपदेश, केवल संन्यासियों को ही नहीं, मनुष्यमात्र को किया जाता है, तब कुछ अतिशयो क्ति से काम लिया जाता है । [उदाहरणाथ, उपस्थेन्द्रिय का संयम सबके लिए आवश्यक हैं; परन्तु आजन्म ब्रह्मचारी कुछ ही रह सकते हैं । स्त्री-पुरुष के संयोग का प्रयोजन केवल शारी रिक अथवा एऐन्द्रियिक सुख ही नहीं है, प्रत्युत प्रेम प्रकट करने और जीवन-शूंखला को जारी रखने का भी एक साधन है । यदि इससे दूसरों को हानि पहुँचे अथवा किसी- की आध्यात्मिक उन्नति में वाधा हो तो यह काम बुरा हो जाता है, वरना स्वयं काम में इन दोनों वुराइयों में से कोई भी वर्तमान नहीं है । जिस काम द्वारा हम जीते हैं, प्रेम प्रकट किया जाता है और जीवन-शूंखला वढ़ती है, वह लज्जा अथवा पाप का काम नहीं होसकता; परन्तु जव॒ अध्यात्म के उपदेशक ब्रह्मचर्य पर व देते. हैं, तव उनका अभिष्नाय यह होता है कि मन की एकता को ऐन्द्रियिक वासनाओं द्वारा नष्ट होने से बचाया जाय । गांधीजी ने अपना जीवन यथासम्भव सीमातक संयत्त वनाने में कुछ भी उठा नहीं रवखा, और जो उनको जानते हैं वे उनके इस दावे को मान जायेंगे कि बड़ “*सगे सम्वन्धियों और अजनवियों, स्वदेशियों और विदेशियों, गोरों और कालों, हिन्दुओं और अन्य धर्मावलम्बी मुस्लिम, पारसी, ईसाई, यहूदी जादि : भारतीयों में कोई मेद




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