योगवासिष्ठ और उसके सिद्धान्त | Yogavasishth Aur Usake Siddhant

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Yogavasishth Aur Usake Siddhant  by भीकनलाल आत्रेय - Bheekanalal Aatreya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ *) विषय . प्र्छ ८ योगवासिष्ट के दाशनिक सिद्धान्त 'रै५९ १--जीवनमें दुःख ओर अश्ञान्ति का साम्राज्य. १५९ (अ) संसारमें सर्वत्र दोष ही दिखाई पढ़ते हैं १६० (आ) यहाँ पर कुछ भी स्थिर नददीं है १६० (इ) जीवनकी दुदशा १६१ (ई. कालका सब ओर साम्राज्य १६३ (उ) जीवनमें सुख कहाँ है ? १६३ ( ऊ) मोहान्घता १्द्ण (ए) लक्ष्मी निन्दा १६५ (रे) अयुनिन्दा ९६६ (आओ) चित्तकी चब्बखता १६६ (झो) तृष्णाकी जलन १६७ (अं) देहकी अरम्यता श्द् (झः) वाल्यावस्थाकी दुदशा १कष् (क) यौवनावस्थाक दोष (६५ (ख,;) स्त्रीनिन्दा ६५ (ग) भोगोंकी निरसता १७० (घ) बुढ़ापेकी निन्दा १७० (ड) जीवनकी असारता १७१ (च) सब :.कार का अभ्युद्य सार है. १७९ (छ) संसार-जनित दुःखकी झसहनीयता १७२ (२) रामचन्द्रके प्रश्न १७२ २-दुःखनिवृत्ति/का उपाय १७४ (१) दुःखका कारण संसारका राग है. १७४ (२. अज्ञानीको दी दुःख होता है. १्ऊछ (३) ज्ञानसेही दुःखकी निवृत्ति होती है १७४ (४) आत्मज्ञानसे ही परम शान्ति प्राप्त होती है... १७५ (५) न्नह्मा द्वारा प्राप्त ज्ञानका उपदेश १७६ ३-जीवनमें पुरुषाथका महत्त्व १७७ (१) पुरुषाथे द्वारा ही सब कुछ प्राप्त दोता है १७७




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