हिन्दी साहित्य बीसवीं शताब्दी | Hindi Sahity Bisavin Shatabdi

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Hindi Sahity Bisavin Shatabdi by नन्ददुलारे वाजपेयी - Nand Dulare Bajpai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४ ) है । अ्रध्ययन श्र श्नुभव की दोहरी ज्योति से उनकी रचनाएँ दीपित हैं । उनके काव्य में पहाड़ी करने का स्वर श्रोर प्रवाह है, उनकी शैली में उसी का प्रवेग है उनके गय-लेखों में श्रौर - विशेषकर उनकी साहित्यिक श्ालोचनाश्त्रों में एक स्वतन्त्र दृष्टिकोण है | उनकी रचनाश्रों पर उन्नीसर्वीं शताब्दी के फ्राम्सीसी यथार्थवादियों का प्रभाव पड़ा है | उनका उपन्यास “तन्यासी” यथार्थवादी शैली की प्रमुख बिश्लेषशात्मक कृति हिन्दी में है । किन्तु उनकी रचनाएँ इतनो देर से प्रकाशित हुई कि मेरी पुस्तक, प्रस्तुत संस्करण में, उनके बबिस्तृत विवेचन से वंचित दी रही | समय के पीछे भी कुछ मनोहर रचनाएँ उपस्थित की गई हैं, किन्तु उनके निर्माण में मौलिक रचना का स्वातन्त््य और अनिवार्यता नहीं है । प्रेमचंद के उपन्यासों को लीजिए श्रौर उनकी तुलना कौशिक, सुदशन या श्री० चतुरतेन की कृतियों से कर देखिए, श्र तो श्र, श्रो० वन्दावनलाल वर्मा यां श्री० सियारामशरण के उपन्यासों को ही उन हे सामने ला रखिए जिनकी प्रेरणाएँ बहुत कुछ स्वतन्त्र भी हैं, किन्ठु केवल समय की दोड़ में पिछड़ी हुई हैं । श्राप ' यहाँ खष्टा श्र श्रनुगामी का अन्तर समभ लेंगे श्रौर काल के कठोर न्याय का 'श्रनुमब कर सकेंगे । परवर्ती रचनाएं एक तो समय का प्राथमिक श्रौर 'जाय्त सैस्पर्श ने पाकर बासी हो गई हैं श्र दूसरे रचयिता का अझ्रछ्ूता हृदय-स्पन्दन न प्राप्त कर म्लानं बनी हुई हैं । वे बनाव “सार शऔर निर्माण की सुघस्ता में मोलिक कृतियों को भी मात कर सकती हैं । किन्तु साहित्य की रज्ज भूमि में उतना ऊँचा पद किसी प्रकार नहदीं पा सकतीं । काव्य में श्रो ० युरुभक्त- सिंह श्रौर रूपकों में श्री ० गोविन्ददासजी कों रचनाएँ किकी हंद तक इसी श्रेणी की हैं। किन्तु जितने अ्रंशों में ये लेखक श्रौर कविं श्रपनी. रचनांश्रों को पंरप्रभाव से मुक्त रख सके हैं, उतने अंशों में नवीमता का श्रानन्द भी देते ही हैं । इन परवर्ती लेखकों का उल्लेख भी में श्रपनी पुस्तक में नद्दीं कर सकी | तीन श्र नाम छूट गये हैं जिनका छूटना साहित्य की किसी भी विवरण-पुस्तक में उचित न होता | वे नाम हैं भरी ० सनेद्दी , श्री० रामनरेश त्रिपाठी श्रौरश्री ०गोपालशरण- सिंह के । ये तीनों दी 'द्विवेदी युग” श्रौर “प्रसाद युग” केबीच की कड़ियाँ हैं श्रौीर इस




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