जांभोजी की वाणी | Jambhoji Ki Vani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाशकीय राजस्थान के सुप्रसिद्ध संत जाम्मोजी की जीवनी और उनकी 'वाणी' को समुचित रूप से प्रकाश में लाने की दृष्टि से, सन्‌ 1959 ई. में भारतीय विद्या मंदिर शोध प्रतिष्ठान के संघालक पं. अक्षयचन्द्रजी शर्मा ने जाम्मोजी की 'वाणी' के सम्पादन का कार्य संस्था में शोध सहायक श्री सूर्यशंकरजी पारीक को सींपा था। श्री अक्षयचन्द्रजी शर्मा के कलकत्ता चले जाने पर संरथा के संचालक श्री चन्द्रदानजी चारण हुए और उनके भी भारतीय विद्या मंदिर रात्रि विद्यालय, बीकानेर के प्रिंसिपल पद पर रथानांतरित हो जाने से “शोध प्रतिप्ठान' के सचालन का भार श्री 'सत्यनारायणजी पारीक को सौंपा गया। यह अपने आप में सुयोग ही था कि इस ग्रंथ के निर्माण में, इन तीनों विद्वानों के उपयोगी सुझाओं और मार्गदर्शन का संयोग हुआ। श्री सूर्यशंकरजी पारीक ने बड़ी लगन और मेहनत से इस ग्रंथ को तैयार किया, परंतु परिस्थितियों वश उस समय यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हो सका, तथापि जाम्मोजी पर शोधकार्य करने वाले कितने ही शोधार्थियों ने संस्था में आकर इस शोधकार्य से लाभ उठाया और अपने ग्रंथों मे इसका उपयोग किया । मेरे लिए यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि संस्था के प्रारम्भिक वर्षों में हुआ यह शोधकार्य डॉ. बाबूलाल शर्मा के प्रयासों से आज ग्रंथ-रूप में प्रकाशित होकर आपके हाथों में है । आशा है, रादैव की भौंति सुधि पाठकों का स्नेह इस ग्रंथ और संस्था को मिलता रहेगा | आखातीज वि.सं, २०५८ मूलचन्द पारीक २६ अप्रैल २००१ ई. मंत्री भारतीय विद्या मंदिर शोध प्रतिष्ठान रतन बिहारी पार्क, बीकानेर (राज.)




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