जीवात्मा | Jeewatma

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Jeewatma by गंगाप्रसाद उपाध्याय - Gangaprasad Upadhyaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गा [ जीवात्मा ८... जाता है और,शरीर के नाश होने पर इसका भी नाश हो जाता दे, इसीलिये मैं .*....... इसको श्रपना स्वरूप कैसे मान हूँ ? सुकते तो इससे शान्ति नहीं होती | न : वस्तुत; यदि शरीर का नाम ही “मैं” हो तो फिर कोई भ भट ही नहीं ही शहता । हम मरने से क्यों डरे ! श्रौर जीवन की क्‍यों इच्छा करे १ न हमको .-.... « जीने से लाभ और न मरने से हानि । श्र न अपने स्वरूप के खोजने से ही री कुछ प्रयोजन है । स्वरूप जान लिया तो क्‍या ? श्रन्त तो एक ही हे श्रर्थात्‌ _.”. .स्वनाश । जो मूख की गति है वही वैज्ञानिक या दाशनिक की । जो सत्यवादी को गति है वही भरूठे की । लो परोपकारी की गति है वही दुष्ट श्रौर ्रत्याचा 1 की | दोनों को एक न एक दिन “'नास्तित्व” के गढ़े में विलीन हो जाना है, न पहले कुछ था न श्रागे कुछ होना है। न हम भूत में थे न भविष्यत्‌ में रहेंगे | यह दो बढ़े महागहरे और श्रन्धकारमय गढ़ों के बीच में एक पतली सी दीवार मात्र है; लिस पर हम बहुत देर तक स्थित नहीं रह सकते । क्या बस्तुत। हम ऐसे ही हैं ? क्या “मैं” का यही स्वरूप है ! कुछ लोगों का विचार है कि इतना भगड़ा भी क्यों करना । संसार में जानने के लिये इतनी वस्तुयें पढ़ी हैं कि उन्हीं से शंवकाश नहीं मिलता । व्यर्थ मैं” की मीमांसा करने में माथा-पच्ची क्या करें | कि ऐसे लोगों के दो दल हैं । एक तो वह है जिनको खाने पीने और खुश * ...... रहने से फु्सत ही नहीं । उनको न तो ' मैं” जानने की श्रावश्यकता है, न श्रन्य _.......... किसी चीज़ के जानने की । यह आनन्दी जीव हैं न सुबह होती है शाम होती है। कर उम्र यॉही तमाम होती है।। पक ० रिा इनमें तर पशुत्रों में कोई मेद नहीं । संभव है कि पुत्रों के मनमें कोई डा भाव भविष्य के सम्बन्ध में उठते भी हों, परन्त॒ इनके मनमें कोई ऐसी तरंग ......... उत्पन्न नहीं होती जो उनको किसी प्रकार से चिंतित कर सके । उनको न कुछ «जानना हैं और न कुछ करना । ऐसों के विषय में कद्दा ही क्या जा सकता है? है __........... परन्तु एक और दल है । वह उन लोगों का है जो बुद्धिमान्‌ तथा वैज्ञानिक । 2... कलाते हैं। हम पशुश्मों से उनकी तुलना नहीं कर सकते । बह विचारशील 7... और उद्यमशील हैं । वह नित्यप्रति ज्ञानोन्नति के सावन खोजते रहते हैं । 7... दूसरों का उपकार फेरना भी उनका ध्येय है। परन्तु बह ' मैं क्‍या हूँ १” की ?.....सौमांता करना व्यभ समझते हैं। उनके श्रतिनिधि रूप में हम इंगलैरड & का 1... तरह: फाच्डा . ०8061 उप घिमंड कण्तात 15, हिफ097 . दिए काठ: ..:तब्ण्त ठ० का. किप0छा ..िए561 100४. 6णण्प्ठी। . 985. प्िक्ा 00017 हर की पफिमव एठियहपाकतें पफिह6, . फ़ि०्प प्रा प्हेएह7 86६ (0 फिचकना _ हि व 98 | उांमिड लए ग्रण लि एप्रंप्रब्छ8, पिंड 0 5प०भांपड साय यिि . नतरपपीम्तािततलकसाकंपकरपकगिकरडमिद




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