आर्य्य मन्तव्य दर्पण | Aaryya Mantavy Darpan

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Aaryya Mantavy Darpan by ईश्वरदत्त मेधार्थी - Ishvaradatt Medharthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ धाय मन्तव्य दपण कर्ता, धर्त्ता, द्ता सब जीवों को कर्मानुसार सत्य न्याय से फल दाता, भादि लक्षण युक्त दे उसी को परमेश्वर मानता हूं । रिप्पणी:--इस लक्षण की पुष्टि के लिए अनेक वेदमन्श्र चारों वेदों में से चुनकर व्याख्या रूप से प्रस्तुत किये जाते हैं । १, सत्यस्वरूप ईश्वर सत्यमदद गभीरः काब्येन सत्य जातेनासश्मि जातवेदाः | न मेदासा नायों महित्वा ब्रत॑ मीयाय यदहे घरिष्ये ॥ अथवेन श। १२१ | ३॥ दाब्दाथ--अ( अहं गभीरः सत्य ) मैं गंभीर हूँ, में सत्यस्वरूप हू, ( जातेन काव्येन ) बने हुए काव्य से में ( जातवेदाः ) ज्ञान देने वाछा हूं । ( न दासः )' न दास ओर ( न आर्य: ) न आये ( मे घते ) मेरे नियम को ( मीयाय ) तोड़ सकता है, ( यत्‌ ) जो ( अहं ) मैं ( महित्वा घरिप्ये ) महिमा के साथ घारण करूंगा, स्थापित करूंगा । शिक्ताः--ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव ओर स्वरूप सत्य हैं । सत्य सदा अटल होता है । इसलिए सत्यस्वरूप इेश्वर के नियम भी सत्य ओर अटल हैं । २. चेतनमात्र ईश्वर यदेजति पतति यच्च तिर््ति प्राणद्प्राणनिमि उच्च यद्झुबत्‌ । तद्दाधार प्रथिवीं विश्वरूप तत्‌ संभूय भवत्येकमेव ॥ भथब० १० | ८1 ११ ॥ दाव्दाथ--अ( यत्‌ एजति ) जो चलता है, ( पतति ) उइता है, ( यत्‌ च तिष्ति ) आर जो ठहरता है, ( यत्‌ प्राणत्‌ अप्राणत्‌ ) ओर जो प्राण वाला बा प्राण रहित ओर ( निमिषत्‌ ) सत्ता की आरंमिक अव-




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