आर्य्य मन्तव्य दर्पण | Aaryya Mantavy Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
119
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ धाय मन्तव्य दपण
कर्ता, धर्त्ता, द्ता सब जीवों को कर्मानुसार सत्य न्याय से फल दाता, भादि लक्षण
युक्त दे उसी को परमेश्वर मानता हूं ।
रिप्पणी:--इस लक्षण की पुष्टि के लिए अनेक वेदमन्श्र चारों वेदों में से चुनकर
व्याख्या रूप से प्रस्तुत किये जाते हैं ।
१, सत्यस्वरूप ईश्वर
सत्यमदद गभीरः काब्येन सत्य जातेनासश्मि जातवेदाः |
न मेदासा नायों महित्वा ब्रत॑ मीयाय यदहे घरिष्ये ॥
अथवेन श। १२१ | ३॥
दाब्दाथ--अ( अहं गभीरः सत्य ) मैं गंभीर हूँ, में सत्यस्वरूप हू,
( जातेन काव्येन ) बने हुए काव्य से में ( जातवेदाः ) ज्ञान देने
वाछा हूं । ( न दासः )' न दास ओर ( न आर्य: ) न आये ( मे घते )
मेरे नियम को ( मीयाय ) तोड़ सकता है, ( यत् ) जो ( अहं ) मैं
( महित्वा घरिप्ये ) महिमा के साथ घारण करूंगा, स्थापित करूंगा ।
शिक्ताः--ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव ओर स्वरूप सत्य हैं । सत्य
सदा अटल होता है । इसलिए सत्यस्वरूप इेश्वर के नियम भी
सत्य ओर अटल हैं ।
२. चेतनमात्र ईश्वर
यदेजति पतति यच्च तिर््ति प्राणद्प्राणनिमि उच्च यद्झुबत् ।
तद्दाधार प्रथिवीं विश्वरूप तत् संभूय भवत्येकमेव ॥
भथब० १० | ८1 ११ ॥
दाव्दाथ--अ( यत् एजति ) जो चलता है, ( पतति ) उइता है,
( यत् च तिष्ति ) आर जो ठहरता है, ( यत् प्राणत् अप्राणत् ) ओर
जो प्राण वाला बा प्राण रहित ओर ( निमिषत् ) सत्ता की आरंमिक अव-
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