वैदिक साहित्य में विहित पोष्टिक कर्म | Vaidic Sahitaya Me Vihit Paostik Karm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह अनेक सुक्त सिपकॉसत या विधान के सम्पूर्ण हनयमों से पूर्वकालिक है कोजत: पुिन्ट हक्जयक सामग्री भी ब्राप्त होती है । इन पुछिट हवजयक मन्नों में अजयों तथा पुरोीतों का देवताओं के प्रीति स्मरण भाव पारलॉक्षस ढीवता हे । ऋग्पेदीय पुरोितिती का शकिवास था पक पोॉदब्य हा क्त्यों की जाना करके उनका कार प्रा प्स किया जा सकता है । यह पकििवास उनमें दृढ़ इच्छा रीक्त उत्पन्न करता ड । तथा ये अना कोई भी कार्य सम्पादित उसने में पर्याप्त समय प्रतीत डीते मे 1 बल तथ्य का दर्रन इंग्खेद के अधालिलत मन्त्र मैं प्राप्त होता हे. - “मी हजावोन अन्धुता कवि: तनमा चिजुगॉतमादी न्वमाय । * के अनुरीलन से स्पज्ट होता है । कि इस वेद में भी पुरिड्टकर्म म्जन्घी सामग्री उधी प्रकार की है जिस प्रकार अथर् वेदापीद में प्राप्त होती ह।. अमल +ग्वेदो में परन्ट बॉविनघक सामकाों। का अर ययन वनम्नवत पीकया ४ ग्वेद में रोगशीक्त सम्बन्धी अ वो देवताओं का स्तवन रोगों को दूर करने के सिर पीकया गया दें जेखे पक शुर्य को ढ्द्य रोग और पदण्डरोग दर करने वाल




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