अपरजिता | Aprajita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपराजिता १७
फिर मींचीं । महिला मुसकरा पड़ी । दोनों आकंठ एकाकार
हो गईं ।
““नीमा, सच कह दो नीमा तुम नीमा ही तो हो ?” माछिनी
प्रसन्नतासे विह्वल थी ।
“क्या इतने ही दिनोंगें आँखों पर विश्वास जाता रहा”'--
नीमा सुसकरा पड़ी कह कर ।
“किन्तु हृदय पर है नीमा”--माठिनी सोह्लास कह
उठी ।
बस इतनी ही सी बातोंमें नीमा और मालिनीका टूटा हुआ
इतिहास क्रमबद्ध हो गया । जेसे बीचका समय कुछ महत्त्व ही
न रखता हो । प्रसन्नताके आवेगमें मािनीका शरीर पारदर्शी हो
रहा था । उसका हृदय प्रसन्नताके नि्मठ स्रोतमें छठ-छकर बह
रहा था |
“पिता जी केसे हैं मालिनी ?””--नीमाने पूछा ।
“केसे भूल पड़ी नीमा ?-मालिनी झंकत हो उठी । उस दिन
नीमाने सारा रंग फीका कर दिया था । पिताजी पर उसका वह
असर पड़ा, जिसने उनकी जीवन शक्ति ही ले ली । रायबहादुर
अपनी वह शक्ति खोकर जीवित ही सत थे । अब रायबहादुरका
उत्साह वायु तरंगों पर नहीं उडता। उनकी प्रसिद्ध जैसे कम
हो उठी ।
“भाइको भर आँख देख न सकी थी, मालिनो । तुम्हारे
सुन्दर भाग्य पर बारी न हो सकी थी, बहिन । पिताजीके छिए
रसभंग हो उठी थी, सखी । इसीलिए आज भाई हूँ। भाई जी
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