संस्कृत आलोचना | Sanskrit Alochana

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Sanskrit Alochana by भगवती शरण सिंह - Bhgvati Shran Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च्न्न् श घन रसों के प्रभद--शु गाररस १९९ हास्य २०२ करुण २०३ रौद्र २०४ वीर २०५ भयानक २०६ बीभत्स २०६ अद्भुत २०७ शान्त २०८ शान्तरस के विषय में विभिन्न मत २०९- २१० वात्सल्य २११ भक्तिरस २११ ॥ रसोन्मीलन के विषय सें विभिन्न सत--उत्पत्तिवाद २१३ अनुसितिवाद २१४ भमुव्तिवाद २१५ व्यक्तिवाद २१६ साधारणीकरण २१६ । रस का रवरूप--रस की आनन्दरूपता २१८ रसकी अनुभूति २२० नाट्यरस २२२ प्रकृति और रस २२३ प्रकृति और भाव रर५ ३ मूल रस की सीमांसा--(१) करुण रस २२५ (२) दुज्ञार- रस २२७ (३) आइचयरस २२७ (४) मधुररस २२८ (५) दान्तरस २२९ । उपसंहार--(१) औचित्य २३९ (२) वक्रोक्ति २३३ (३) ध्वनि २३४ (४) रस २३६-२३७।]




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