गांधी साहित्य मेरे समकालीन | Gandhi Sahitiya Mere Samkalin

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gandhi Sahitiya Mere Samkalin by डॉ. एल. एन. उपाध्याय - Dr. L. N. Upadhyaya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. एल. एन. उपाध्याय - Dr. L. N. Upadhyaya

Add Infomation About. Dr. L. N. Upadhyaya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कप श्‌ क्र अ्रपूर्व थी । यह श्रक्षरश सत्य है कि वे जनता के श्राराध्यदेव थे, प्रतिमा थे, उनके वचन हजारों श्रादमियोके लिए नियम श्रीर कानूनसे थे । पुरुपोमे पुरप-सिहह॒ससारसे उठ गया। केनरीकी घोर गर्जना विलीन हो गई ।” अ्रनुभूतिकी तीन्नता श्रोर वास्तविकताका श्रौर भी सदर चित्रण उनके सस्मरणोमे हुमा हैं। घटनाओ श्रौर वातलिपके द्वारा उन्होने वर्ण्य व्यक्तिकी बाहरी श्रौर श्रातरिक सुदरता-कूरुपत्ताकी रेखाश्रोकों इस प्रकार उभार दिया है कि इसके पूर्ण परिपाकके साथ-साथ व्यक्तिका सपूर्ण चित्र हुदयपर पत्थरकी लीक वन जाता है । कस्तूरबा गाधी, बाला- सुदरम्‌, देगवथुदास, घोपाल वावू तथा वासती देवी ऑ्रादिके सस्मरण इस दृप्टिसि बहुत ही सदर बने हैं “में घोपालवाबूके पास गया । उन्होंने मुभे नीचेसे ऊपर तक देखा । कुछ मुस्कराये श्रौर वोले “मेरे पास कारकूनका काम है । करोगे ?” मेने उत्तर दिया--'जरूर करूंगा । श्रपने वस भर सबकुछ करनेके लिए में आपके पास झाया हु 1” “नवयुवक, सच्चा सेवा-भाव इसीको कहते है ।”” कुछ स्वयसेवक उनके पास खडे थे । उनकी श्रोर मुखातिव होकर कहा--'देखते हो, इस नवयुवकने क्या कहा *” ही फिर मेरी श्रोर देखकर कहा, “तो लो यह चिट्टियोका ढेर... देखते हो न कि सैकडो झ्रादमी मुकसे मिलने श्राया करते है । श्रव में उनसे मिलू या जो लोग फालतू चिट्ठिया लिखा करते है उन्हे उत्तर दू । इनमें वहुततेरी तो फिजूल होगी, पर तुम सबकों पढ़ जाना । जिनकी पहुच लिखना जरुरी है उनकी पहुंच लिख देना श्रौर जिनके उत्तरके लिए मुझसे पूछना हो पूछ लेना ।” उनके इस विण्वाससे मुभने वडी खुनी हुई । श्री घोषाल मुझे पह- चानते न थे । मेरा इतिहास जाननेके वाद तो कारकुनका काम देनेमे उन्हें जरा गर्म मालूम हुई, पर मैने उन्हें निद्चित कर दिया--'कहां मे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now