भक्ति और प्रपत्तिका स्वरूप | Bhakti Aur Prapttika Swarup
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
53
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रै9) भक्ति और प्रपत्तिका--
हक
किंवा पापाइंहरण स्व किंवा मोक्ष आदि अलौकिक प्रयोजन
भा भाक्तका उद्ददय न रहना चाहिये । क्यों के ' भाक्तिर
भजनानहामुत्र फलभागनराइयनामाप्मन्मन कल्पनसू 2
इत्याद शतम तथा * डानि पंसाधापंना विष्णा *ै * भक्त्यां
स्वनन्यया * * अनिमित्ता भागवती ' इत्याद म्साव पूराणायें
निष्काम भाक्तकराहां ।वघान है । * श्रवण कातन विष्णा
समरपरयम्रधडवध:' से काम. पापर। ८ ेजसमन, आलजकशममकलक््रअधा न प- पपकतपपरसाती
इत्याद प्रसुटादक चचनतम * आपता ” झाबद ह। अधात भग-
वानम अप करत नए भाक्त करना चाय एसपा कहा ह्।
सचा करत समग्र उस संबा या न्वघा भाक्त का मगबान में
हा स्थित रखना चाहय, प्हां से उठालिना न चाहय । भाक
करक जा लाग भगवान् स किसी भी फलकों चाहना करत
है व उप भाक्तका भगयान् के पास से हटा कर अपने पास
हा ललत है | सवा कर श्रामगवान् में हा ऑआत रखनी
चाहय । एसा भाक्त आनिमित्ता कहीं जाती है ।
नामत्ता हाकरभा फिर यह भागवता होनी चाहिये ।
अथात् का नि्विशष निधमेत्र फिंचा आनित्याल्पगण चर तु;
भाक्त का विषय नहीं हाना चा'हये किन्त सर्वान पड़श्वय
संथन्न का [नत्यानन्त कर्याणगुण पुरुषात्तपह्ी उपको वि»
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