व्रत तिथि निर्णय | Vrat-tithi-nirnay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घ्ततिथिनिणंय श्७
सर्थात् उषाकाल माना गया है । यह निश्चित है कि तिलोयपण्णत्ती उत्तर-
पुराण पदलेकी रचना है तथा भगवानके निर्वाणकालकी मान्यता
प्रदोषकालकी अधिक प्रामाणिक है । प्रदोपकाल्में निर्वाण होनेसे भी
चिर्वाणोत्सच जनतामें प्रातःश्काल ही होता चल आ रहा होगा । इसी
कारण उत्तरपुसणकारने भगवान पार्श्नाथका निर्वाणकाल उषाकाल
मान लिया हैं | अतएव मगवान् पार्थना थका निर्वाणोत्सव सप्तमी तिथिकी
रात हो जानेपर अष्टमीके प्रात'कालमें होना चाहिए । यदि सप्तमीको
विद्याखा नक्षत्र मिल जाय तो और भी उत्तम है, अन्यथा ससमीकी
ससमापति होनेपर अध्मीकी प्रातः्वेलामें सूर्योदयशे पूर्व ही. निर्वाणोत्सव
सम्पन्न करना अधिक शास्त्रसम्मत है । यद्दं अष्टमी तिथिका आरम्भ
नहीं माना जायगा, क्योंकि सूर्योदयके पहले तक सप्तमी ही मानी जायगी।
इस प्रकारके उत्सवोर्मे उदया तिथि ही श्रहण की जाती है । जिन स्थानोपर
घ्टीकी समासि और सप्तमीके प्रात.में निर्वाणोत्सव सम्पन्न किया जाता है,
-वह्द भ्रान्त प्रथा है | इसी प्रकार अपराह्नमें निर्वाणोत्सव मनाना भी
अन्त है ।
रक्षावन्धन पर्वकी कथा प्रायः विदित दी है । इस दिन ७०१
-सुनियोकी रक्षा दोनेके कारण ही यद्द पर्व रक्षाबन्घनके नामसे प्रसिद्ध
रक्षा-वन्धन . गा है। दरिवशपुराणके बीसवें सर्गमें मुनि विष्णु-
् कुमारका आख्यान आया है | रक्षावन्घनकी व्यवस्थाके
-सम्बन्ध्म उदया तिथि ही ग्रहण की गई है । इसका प्रधान कारण यह है
कि उद्यकालीन पूर्णिमा जिस दिन होगी, उस दिन श्रवण नक्षत्र भा ही
-जायगा । गणितका नियम इस प्रकार का है कि चतुर्दशी की रात्रिको प्रायः
आअवण नक्षत्र आ दी जाता है | श्रुततागर मुनिने मिथिल्पमें चतुर्दशीकी
रात्रिको श्रवण नक्षत्रका कम्पन देखा था । आराधनाकथाकोशुर्ये बताया
नया है-- 1
सिधिलायामथ ज्ञानी श्रुतसागरचन्द्चाकू।
सुनीन्द्रो ब्योस्नि नक्षत्र श्रवर्ण श्रमणोत्तम ॥
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