व्रत तिथि निर्णय | Vrat-tithi-nirnay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vrat-tithi-nirnay by नेमिचन्द्र शास्त्री - Nemichandra Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नेमिचन्द्र शास्त्री - Nemichandra Shastri

Add Infomation AboutNemichandra Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
घ्ततिथिनिणंय श्७ सर्थात्‌ उषाकाल माना गया है । यह निश्चित है कि तिलोयपण्णत्ती उत्तर- पुराण पदलेकी रचना है तथा भगवानके निर्वाणकालकी मान्यता प्रदोषकालकी अधिक प्रामाणिक है । प्रदोपकाल्में निर्वाण होनेसे भी चिर्वाणोत्सच जनतामें प्रातःश्काल ही होता चल आ रहा होगा । इसी कारण उत्तरपुसणकारने भगवान पार्श्नाथका निर्वाणकाल उषाकाल मान लिया हैं | अतएव मगवान्‌ पार्थना थका निर्वाणोत्सव सप्तमी तिथिकी रात हो जानेपर अष्टमीके प्रात'कालमें होना चाहिए । यदि सप्तमीको विद्याखा नक्षत्र मिल जाय तो और भी उत्तम है, अन्यथा ससमीकी ससमापति होनेपर अध्मीकी प्रातः्वेलामें सूर्योदयशे पूर्व ही. निर्वाणोत्सव सम्पन्न करना अधिक शास्त्रसम्मत है । यद्दं अष्टमी तिथिका आरम्भ नहीं माना जायगा, क्योंकि सूर्योदयके पहले तक सप्तमी ही मानी जायगी। इस प्रकारके उत्सवोर्मे उदया तिथि ही श्रहण की जाती है । जिन स्थानोपर घ्टीकी समासि और सप्तमीके प्रात.में निर्वाणोत्सव सम्पन्न किया जाता है, -वह्द भ्रान्त प्रथा है | इसी प्रकार अपराह्नमें निर्वाणोत्सव मनाना भी अन्त है । रक्षावन्धन पर्वकी कथा प्रायः विदित दी है । इस दिन ७०१ -सुनियोकी रक्षा दोनेके कारण ही यद्द पर्व रक्षाबन्घनके नामसे प्रसिद्ध रक्षा-वन्धन . गा है। दरिवशपुराणके बीसवें सर्गमें मुनि विष्णु- ् कुमारका आख्यान आया है | रक्षावन्घनकी व्यवस्थाके -सम्बन्ध्म उदया तिथि ही ग्रहण की गई है । इसका प्रधान कारण यह है कि उद्यकालीन पूर्णिमा जिस दिन होगी, उस दिन श्रवण नक्षत्र भा ही -जायगा । गणितका नियम इस प्रकार का है कि चतुर्दशी की रात्रिको प्रायः आअवण नक्षत्र आ दी जाता है | श्रुततागर मुनिने मिथिल्पमें चतुर्दशीकी रात्रिको श्रवण नक्षत्रका कम्पन देखा था । आराधनाकथाकोशुर्ये बताया नया है-- 1 सिधिलायामथ ज्ञानी श्रुतसागरचन्द्चाकू। सुनीन्द्रो ब्योस्नि नक्षत्र श्रवर्ण श्रमणोत्तम ॥ च्ू




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now