सूर सौरभ | Sur Sourabh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सादित्य-लहरी का दूसरा पद सुर-जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डासता हे।
उसे हम ज्यों का त्यों नीचे उद्धृत करते हैंः--
प्रथम हो घृूथु जाग ते मे प्रगट श्रदूभुत रूप ।
ब्ह्मसाव. विचारि ब्रह्मा राख नाम झनूप ॥
पान पय देवी दियो सिव आदि सुर खुख पाय 1
कहीं दुर्गा+ पुन ते भयौ शसि. सुखदाय ॥
पारि पॉयनु सुरन के पिहु सददति भ्रस्तुति कीन 1
ताखु वंस प्रसंस मे भौ. चन्द चार नवीन ॥
भूप '्रथ्वीरान दीनों तिन्हें ज्वाला देख ।
तनय ताके चार, कौन्हों प्रथम श्राप नरेस ॥
दूसे गन. चंद ता. सुत सीलचंद सरुप ।
बीर चन्द प्रताप पूरन भयो शदूभुत रूप ॥
रत श्र हमोर भूपति संग खेलन जात ।
त्तासु बंस थनूप भी दस्चन्द अति. पिख्यात
श्वागरे रहि मोफचल में रहो ता. सुत बोर ।
'. पुत्र जनमे सात ताकि. महा भट गम्भीर 0
छृष्णुचन्द, उदारधन्द जो. रूपचन्द सुभाइ ।
दर घुद्धिचन्द, प्रकाश चौथी चन्द भी. सुखदाद ॥।
देवचन्द, प्रबोध, संसृत चन्द ताकों नाम 1
भयो सप्ती नाम सुरजचन्द् मन्द् निकाम ॥1
सो समर करि सादि स्यों सब गये विधि के लोक ।
रही सुरनचन्द इग ते हीन मरि भेरि सीक 9)
परयो कूप पुकार काहू सुनी ना. संसार ।
सातयें दिन श्राइ यदुपति कियो. शाप उधार |
दिव्य चस दे कद्दी सिसु सुन मांग बर जो चाइ ।
हों कहीं अभु भगतिं चाइत शत्रु नास छुमाइ ॥
दूसरों ना रूप देसों देखि राधा स्याम 1
सुनते. कदनासिंधु भाखी एवमस्तु सुधाम ॥
के शब्द के साि आया संगयान शिव माने जब है य्त इक से सके
या शक्ति को यद्दीं घ्ह्मराद की जननी कहा गया है जो शिव की पत्नी हैं ।
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Ranjana Dixit
at 2020-04-24 13:29:00Ranjana Dixit
at 2020-04-24 12:41:24