भारती-गद्य-धारा | Bharti-Gadhya-Dhara

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Bharti-Gadhya-Dhara by मुंशीराम शर्मा - Munshiram Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० होता है और भाषा को परिष्डत एवं प्रवाहपूर्ण बनाता होता है । आादोचनात्मक निवय इसी विभेद के अन्तर्गत आते हैं 1 भावार्मक नियन्व,--दस प्रकार के तिवनस्वों में रस और भावा की व्यजना का प्रमुख स्थान रहता ई 1 भावाविश में आर लेखक अपने जारताद, परेम, कोप, धृणा, हर्प, विधाद, विस्मय अथवा इस प्रहार में अन्य किसी भाव की व्यजना इतनी होवता से कहता चाहता है कि पाठक भी उसके प्रवाह में दद जाय । ऐसे निबन्धो मे सेवक अत्युक्ति या अतिशयोक्ति की भी सहायता लेता रहता है ताकि भावा को तीता पक व्य करर गरे । गय-वाव्य ट्म प्रहार के निबन्ध के अग्रि निष्ट रहने है। सारादा यह है कि वर्णनात्मक निवन्धो का सम्बन्य अपिक्नर देशने होता है उसमें विपय या वस्तु को स्थिर रुप में देवर वर्णन किया जाता है। विवरणात्मक निवत्य का सम्बस्य काल में होता है भौर बसतु को गतिशील रूप में देवा जाता है । विवारात्मिक निचन्धा मे तकी प्रयोता रोनी हतो भवात्य नियस्था में भायता की । एव मे बृद्धि-तेव की प्रशनता रहती है, तो दूसर में हुइ्य तय की । -सेम्पादक




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