श्रीतुकाराम चरित्र | Shritukaram - Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
714
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लक्ष्मण रामचंद्र पांगारकर- Laxman Ramchandra Pangarkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे३ )
हो अथवा किसीकी खोज इसके बाद प्रकट हो तो उसके लिये मैं जिम्मेदार
नहीं हूँ । आठ वर्षसे इस अन्थकी पुकार मची है और इसके वारेमें
अनेक लेख और व्याख्यान प्रसिद्ध होते रहे हैं, फिर भी यदि किसीने
कोई बात मुझसे छिपा रखी हो तो यह उन्हींका दोष है ।
इस चरित्रग्न्थका तीसरा आधार है तुकारामजीके प्रयाणकालसे
छेकर अवतक उनका जो-जो चरित्रकथन और गुणकीरतन हुआ; जो
जो आख्यायिकाएँ, ख्यात हुई; जो-जो चरित्रग्रन्थ और प्रबन्ध लिखे
गये--उन सबका पर्यालोचन । इस सम्बन्धमें भी दो बातें कहनी हैं । इस
अन्थमें तुकाराम महाराजकी गुणावली और भगवत्कृपाके प्रसज्ञौंका वर्णन
'पाठक पढ़ेंगे। इस गुणावली और भगवत्कृपाके दिव्य प्रसद्ध महाराजके
जीवनकालमें सबपर प्रकट हो चुके थे । इस कारण उनके समकालीन
तथा पश्चात्कालीन सभी सन्त कवियोँने प्रेममें विभोर होकर उनका
यर्णन किया हैं । इन्द्रायणीके दहमें ठुकारामकी बहिर्याको भगवानने जल-
से उबार लिया । यह घटना संवत्त् १६९७ से भी पहिछे कोल््हापुरतक
गॉँव-ॉंवमें फैल चुकी थी । इसी संवत् १६९७ का एक लेख वहिणावाईके
आत्मचरित्रमें मिलता है कि कोट्हापुरमें जयराम स्वामी दरिकीर्तन करते
हुए श्रीतुकाराम महाराजके अभड् गाया करते थे । रामेश्वर भट्ने
तुकाराम महाराजकी जो स्तुति की है उसका प्रसज्ञ आगे आवेगा ही ।
इन्हींकी एक आरतीमें एक चरण इस आशयका है कि, “पत्थरसहित
वहियोंको जछपर ऐसे रखा जेसी लाई छिटकी हो । सदेह वेकुण्ठ-
गमनके विषयमें रज़्नाथ स्वामीका बड़ा ही सुन्दर पद आअन्तिम अध्यायमें
आया है । इन्हींके भाई विद्वल ( जन्मसंवत् १६७३ ) की प्रसिद्ध प्रभाती
“उठि उठि बा पुरुषोत्तम” में यह चर्चा भी आ गयी है कि; “उनकी
चहियाँकों ठुमने पानी लगनेतक न दिया” । संवत् १७४३ में देवदासने
जो 'सन्तमालिका* रची उसमें कहा है कि “जातिके बनिये ठुकाराम;
तेरे भजनमें बड़ा गाढ़ा प्रेम है । इसीसे तूने उस पुरुषोत्तमकों पा लिया;
जो तेरे कागज भी जल्से तारने चला आया ।' श्रीघर स्वामीके
पसन्तप्रताप' में बहियोंकि उबारे जानेकी बात लिखी है । संवव, १७३५ के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...