बुद्ध और नाचघर | Buddh Aur Nach Ghar

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Book Image : बुद्ध और नाचघर  - Buddh Aur Nach Ghar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० न भगवान पाणिनि ने कहा है--''छन्द पादी तु वेदस्य श्रर्वात्‌ छद वेद के चरण हैं, उनके चल वह चलता है, भ्रागे वढ़ता है । 'हरिवण पुराण' में जहाँ वाराह भगवान के विराट रूप का वर्णन किया गया है वहाँ भी उनके चरणों को छंद कहा गया है, एक स्थान पर, छद ही उनके मार्ग है, ऐसा भी है छद वास्तव में सब प्रकार की काव्दाभिव्यक्ति के“चैरण है । लय उनकी गति है। तुक को उनका विश्राम कह सकते है । सध में ही नही, गद्य में भी एक प्रकार की लय होती है श्रौर विभिन्‍न लेखका के गद्य की लय श्रलग होती है। सेन्ट्सवरी ने श्रग्रेजी मे गद्य की लय पर एक विस्तृत पुस्तक ही लिखी है । हमारी बातचीत में भी लय होती है, हम विभिन्‍न भावो-विचारों के लिए विभिन्‍न लयों का उपयोग करते ह--विना उसके प्रति सचेत हुए ही । तुकात छद, जैसे भावनाग्रो का नृत्य है, जिसमे चरण निष्नित लय पर उत्ते-गिरते श्रौर तुक के सम पर पहुँचकर रुक जाते हे । श्रतुकात छद प्रयोजनावं कही जाने के समान है । जब तक ध्येय न प्राप्त कर लिया जाय तव तक रुकने की कोई जगह नहीं , बरावर चलें जाम्रो । मुबत छद किसी श्रापाती स्थिति में किसी श्रज्ञात प्रदेश को पार करना-सा है जहाँ मनुष्य कभी तेज चलता है, कभी वीमे , कभी दाएँ देखता है, कभी वाए श्रौर कभी मुडकर पीछे । उसे रास्ते की खोज भी करनी होती है, रास्ते पर बढ़ना भी दोतता है । उसे पता नहीं रहता फि बह कहाँ जा निकलेगा । जीवन भाव- नाथ्ों का सामजस्यपुर्ण नर्तन भर नहीं, ग्रौर न ऐसा स्वान ही जहाँ हर लक्ष्य रुपप्ट दिखलाई देता है, जिसकी श्रो र श्रादमी बस ऑ्रपना कदम बढ़ाता चला जाय । बहुत सी श्रापाती स्थितियों फा सामना भी यहाँ करना पडता है । _ यदि काव्य जीवन का प्रतिविस्व है तो इसमें तुकान उद, श्रतुकान्त छन्द ग्रौर मुबत उद सबकी सार्थकता है । मुक्त उद मे मेरी पहली रचना यी--'वगाल का काल, जो सन्‌ १६८४३ में नियी गई थी ग्रौर सन्‌ १६ ४६ में प्रकाकित हुई । झ्रापकों एक मजे बी वात बताऊं । मेने पथिता दिखनी मुक्त उद से ही झारभ की थी । मेरी उम्र चौदह-पदह वर्ष की होगी । उस समय कलकत्ता गे सिफलने




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