फ्रीलांसर | Freelancer
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.05 MB
कुल पष्ठ :
269
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ंढ । दाढ़ी-मूंछ साफ'' उंगलियों से होंठों तक की यात्रा करती, जल-जलकर
वाक होनेवाली पहलवान छाप वीड़ी ।
दस्सियत मामूली से थोड़ा हटकर लगी ।
“आपका कॉलम बड़े मन से पढ़ा जाता है।” अपनी ओर देखती छाहाना
की आंखों में झांककर सेन ने कहा ।
“लगता है, आपने कोई सर्वेक्षण कराया है।”
एक खुली नज़र शाहाना पर डालकर सेन कॉफ़ी पीने लगा, वोला कुछ
नहीं ।
थोड़ी देर दोनों खामोश रहे । शाहाना ने अपनी कॉफ़ी का अन्तिम घूंट भरते
हुए पहल की ।
आप ज्यादातर बाहर ही रहते हैं शायद ।”
“पापी पेट के लिए रहना पड़ता है।”
“पिछले दो वर्षों में वुल तीन-चार वार देखा होगा आपको यहां । डी
“इतना बाहर तो नहीं रहता । वैसे आप आतीं भी तो हफ्ते में एक वार हैं ।
जब आप आती हैं, मैं जा चुका रहता हूं ।'
“औसतन कितना समय आपको वाहर विताना पड़ता है ? ”
कोई तय नहीं । कभी-कभी तो दो-तीन महीने लगातार बाहर रहता हूं ।”
“इसीलिए शायद पाठकों का मत पढ़ने का मौका आपको ज्याद मिलता है ? ”
जी हां, तभी कहां, आपका कॉलम वहुत्त पढ़ा जाता हूँ । आपने क्या सोचा,
में मजाक कर रहा हूं ? ”
'गोसी गुस्ताखी मैं पहली मुलाक़ात में नहीं करती ।”
आप तो बुरा मानने लगीं ! ”
नहीं तो *' 'मैंने बस यूंही कह दिया ।”
“यूंही कहकर लोगों पर वड़े-वड़े हमले कर दिए जाते हूँ ।”'
“ने आपपर हमला तो नहीं किया ।” शाहाना ने मुसकुराहट का शोख परदा
अपने चेहरे से हटा लिया ।
“और हमला किस तरह किया जाता हूं? ”
'पमकार की चमड़ी तो मोटी होती हैं । आप तो खासे भावुक हैं
“पी पत्रकार होने से पहले एक ईमानदार आदमी हूं ।”
फ्री-लांसर / १७
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