एक औरत की जिन्दगी | Ek Aurat Ki Zindagi

Ek Aurat Ki Zindagi by शुभा वर्मा - Subha Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक झ्रोरत को पजदगों / 17 ही रत्ती पैर पर चिल्लाना शुरु कर देवी । उसका चिह्लाना तब त्तक चलता रहता जब तक इप्रा कटोरी मे तेल लेकर उसके परो की मालिश करनेन श्रा जाती । एक पर वी मालिश खत्म कर इथा जब दसरा पर पकडती तो रत्ती कहानी के लिए जिद करने लगती । इन्ा को रोज एक या दो कहानिया सुनानी पदती । सँकडो वार की सुनी हुई उन कहानिया से रत्ती कभी नहीं कब्नी श्र इम्ा भी एक भरे हुए रिकाड की तरह चलती रही । कहानिया तो सभी वच्चे सुनत है पैरो की मालिश पर मा प्रवसर भव्ला पड़ती क्यो झादत बिगाड रही है. दुनिया के बच्चे पेलते है भ्रमोखे की यही तो नहीं है. लडकी वी जात है. रोज- रोज पैर दववाने की श्रादत पड जाएगी तो बड़ी होकर क्या करेगी ? इश्रा का जवाब हमेशा एक ही होता दिन भर खेलती रहती है पैर दुख जाते होगे बडी होकर श्रपने श्राप समझ जाएगी । ऐसी बात नहीं थी कि रत्ती बडी लाडली बंटी थी । खुद इग्रा ने ही बताया था कि जब चह पंदा हुई तो सभी पटटीदारी मे मातम मनाया गया था। दो लडक्यो के बाद अक्सर लड़के पैदा होते है । रत्ती जब पट में थी तो. सोलह श्राने सबको उम्मीद थी. झ्रवकी लडका जरूर होगा ।. लेकिन दौडी भाई रत्ती । भगवान ने दाग दाग बर भेजा था । पीठ पर क्तिना बड़ा काला चकत्ता था । दस दिन बाद ही मा को सौरी से उठा दिया गया । हर बार बेटी पैदा करनेवाली बहू को कितना श्राराम दिया जाता । मा घर से काम काज मे लगी । दिन भर यू ही री री बरने के लिए रत्ती छोड दी गई । रोते रोते रत्ती का गला बैठ जाता गोले ग दे बिस्तर पर घटा पड़ी रहती । कार्तिक छठ दूसरे श्रघ के दिन सुबह भ्राठ बजे पैटा हुई रत्ती सूय पुत्री मानी गई थी. इस वार भी बटी होने पर विलखती हुई इप्ा को लोगो ने यही कहकर समभकाया था । मा वी श्रोर से वह पुरी तरह सूरज की किरनो के हवाले कर दी गई । दिन चढता तेज धूप झ्ागन मे उतरती रत्ती खटोले पर पड़ी रोती चित्लाती सोती-जागती रहती । घर के कामा में लगी मा का गुस्सा कम होता ममता जागती तो पल- भर खटोने के पास बेठकर उसे दूध पिला देती कामों का सिलसिला




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