श्री मद्वाल्मीकीय रामायण अयोध्याकाण्ड | Sri Madvalmikeeya Ramayana Ayodhyakand

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Sri Madvalmikeeya Ramayana Ayodhyakand  by चन्द्रशेखर शास्त्री - Chandrashekhar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ अयोध्याकाण्डम इति वः पुरुषव्याघ्र। सदा रामो5भिभाषते । व्यसनेषु मनुष्याणां भर भवाति दु्खित ।४०॥। उत्संबषु च सर्वेष॒ पितेव परितुष्याति । सत्यवादी महेष्वासो दद्धसेवी जितेन्द्रियः ॥४ ९॥। स्मितपूर्वाभिभाषी च धर्म सर्वीत्मनाश्रितः । सम्यग्योक्ता श्रेयसां च न विश्ह्म कथारुचि ।।४२॥। उत्तरोत्तरयुक्तो च. वक्ता वाचस्पतियंथा । छुभ्रूरायतताम्राप्तसाक्षाद्रिष्णुरिव स्वयम ॥४ हे।। रामो लोकामिरामो5्य॑ च्ौर्यवीयपराक्रमे: । प्रजापालनसंयुक्तोा न. रागोपहतेन्द्रियः ॥४१४।। शक्तखैलाक्यमप्येष भोक्तुं किं न महीमिमाम । नास्य क्रोधश्मसादश्व निरथोडिस्ति कदाचन ॥४९०। हन्त्यप नियमाद्रध्यानवध्यषु न कुप्याति । युनक्त्यरथे प्रहृष्टश्र तमसी यत्र तुष्याति ॥४६)। दान्ते। सर्वप्रजाकान्तैः प्रीतिसंजननेनणाम । गुणेविरोचते राम दीप्त। सूये इवांशामिर ॥'४७। तमेवंगणसंप्न॑ रामं... सत्यपराक्रमम । लोकपालोपमं नाथमकामयत मेदिनी ॥'४८॥। वत्सः श्रयसि जातस्ते दिए्टयासौ तव राघवः । दिष्ट्या पुत्रगुणेयुक्तो मारीच इव कश्यप ॥४९)॥। बलमाराग्यमायुश्च रामस्य विदितात्मनः । देवासुरमनुष्येष॒. सगन्धवॉरगेष्ु च ॥५०॥। सेवा तो करते हैं ॥ ३४ ॥ पुरुषशेष्ठ रामचन्द्र इसी प्रकार सबसे पूछुते हैं । जो मनुष्य डुःखी होता है रामचन्द्र सचयं उसके दुम्खमें दुः्खी होते हैं ॥ ४० ॥ उनकी प्रसननतामें रामचन्द्र स्वयं प्रसन्न होते हैं, जिस प्रकार पिता प्रसन्न होता है । वे सत्यवादी धनुर्धारी चुद्धोंकी सेवा करने वाले श्रौर जितेन्द्रिय हैं ॥ ४१ ॥ वे सदा प्रसन्न रहते हैं, हँसकर बाते करते हैं श्रीर सर्वात्मना घर्मको प्रघानता देते हैं, यथावत्‌ सभीके कल्याण करनेवाले हैं श्रोर ऋगड़ेकी बातचीत से उन्हे प्रसन्नता नहीं होती, ऐसी बात न तो वे खुद कहते हैं श्रौर न दूसरोंकी कद्दी पसन्द करते हैं ॥ ४२ ॥ पर युक्तियुक्त उत्तर प्रत्युत्तर करनेमें चे बदस्पतिके समान वक्ता हैं, उनकी भद्टिं खुन्दर हैं, झाँखें बड़ी र लाल हें, वे स्वयं विष्णुके समान हैं ॥ ४३॥ ये लोकप्रिय 'रामंचन्द्र शो यं ( युद्ध में निभय रहना ) वीये ( स्वयं छुमित न होकर शत्रुकों छुमित करना ) और पराक्रम ( युद्धमें शीघ्रताकरनां ) से सदा प्रजापालनमें लगे रहते हैं, शनुरागके कारण उनकी इन्द्रियां ढ़ नहीं दोगयी हैं, वे यथावत्‌ काखे करती हैं ॥ ध४ ॥ थे समस्त श्रिलोकका शासन करसकते हैं, फिर इस राज्यकी कौन बात । इनका क्रोघ झोर इनकी प्रसन्नता कभी व्यथ नहीं जाते ॥४५॥ ये राजनियमके श्रचुसार सदा झपराधियोंको ही दण्ड देते हैं, निरपराधियोंपर कभी क्रोघ नहीं करते । रामचन्द्र जिसपर प्रसन्न होते हैं उसको धन देते हैं ॥ ४६ ॥ रामचन्द्रने झपने मनपर अधिकार किया है, उनके गुण समस्त प्रजाओोंके दितकारी हैं श्ौर समस्त मनुष्योंको प्रसन्न करनेवाले हैं । किरणोंके द्वारा प्रदीप्त सूयंके समान रामचन्द्र झपने इन गुणोंसे शोमित होते हैं ॥ ४७ ॥ इन पूर्वोक्त गुणोंसे युक्त सत्यपराक्रम रामचन्द्रको लोकपालके समान प्रथिवी भी. अपना स्वामी बनाना चाहती है । प्रथिवीका झ्थ है प्रथिवीपर रहनेवाले मचुष्य ॥ ४८ ॥ झापके पुत्र रामचन्द्र प्रजाकी रक्षा ( ,राज्यपालन ) करनेमें समय दोगये हैं यह हमलोगों के भाग्यकी बात है, मरीखि प्रजापतिके पुत्र कश्यप जिस घक्कार पुत्रके सभी गुण थे, बेसेद्दी गुणी रामचन्द्र भी हैं, इनमें भी पुत्रके गुण बतेंमान हैं ॥ ४8 ॥ श्रात्ससंयमी रॉमचन्द्रके बलवान, नीरोग श्रौर दीरघ॑जीवी दोनेकी कामना देवता, अखुर, मनुष्य, गन्घ शोर नागलोकके वास्री




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