सुबाहुकुमार | subaahukumar

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subaahukumar  by श्री बालचंद्र श्रीश्रीमाल - Shri Balchandra Shri Shri Mal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्व 'प द्रावस्था खुत्यु काल का नमूना दे झ्ोर स्त्रप्ाचस्था पुनजन्म का नमूना दे । निद्रावस्था में जिस प्रकार शर्यर के निश्चल पढ़े रदने पर भी श्ात्मा स्वप्- जन्म लेता दै, उसी प्रकार सत्य ढोने पर शोर शरीर दो जाने पर भी श्ात्मा दूसरी जगद जन्म लेता है। चरसथा श्रोर स्वप्ावस्था पर मजुप्य भली प्रकार फरे, तो उसे श्ात्मा के स्तित्व श्रौर पुनर्जन्म के फाई सन्ददद न रद । दे जम्वबू! घारिणी रानी श्रपने सुन्दर सुसज्जित तथा स गन्घित शयनागार में कोमठ्ठ शय्या पर सो रद्दी थी । चद्द न तो गाढ़ निद्वा में दी थी श्रोर'न जागददी रही थी ! इतने में ड- सने एक कल्याणकारी स्वप्त देखा । स्प्र में उसने यदद देखा कि एक केसरी- सिंध- जिसकी गर्दन पर खुन्द्र-उुन्दर सुनदरी ' चाल विखर रददे दं,दोनो 'ांखे चमकी हो दैं,कंघे उठे हुए हैं पूंछ टेढ़ी दो रददी दे-जंभाइ(चगा सी) लेता डा घाकाशले उतर कर मेरे मुद्द में घुस गयो दे । इस स्वम को देखने से धारिणी नि रानी की नींद खुल गई । शुभ खम् के देखने .खे घारिणी रानी दि के न्जए 2: जे उि रिजच तप श न््प रे झ््थ है उअभ शा यो डर श्प ् लि (१३)




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