श्री तीर्थंकर चरित्र प्रथम भाग | Shri Thirthankar charitra Part 1

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Shri Thirthakar-charitar Part 1 by श्री बालचंद्र श्रीश्रीमाल - Shri Balchandra Shri Shri Mal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शशक. = | ॐ पश्चात्‌, शरीर त्याग, दवितीय करप ( ईशान्य देवलोक } मे , लल्लितांग देव हुआ । लल्ितांग देव की, स्वयंप्रभा नाम्नी प्रधान देवी थी। । उधर महावल की मृत्यु का हाल जानकर, स्वयंबुद्ध मंत्री को भी संसार से वैराग्य होगया । उसने, भी गृह-संसार त्यागः दीक्षा ले ली और संयम की निरतिचार आराधना करके, समय पर शरीर त्याग, द्वितीय कल्प मं सामानिक देव हुआ | देव होने के पश्चात्‌ भी स्वयंवुद्ध, श्रपने पूर्वं स्वामी म्ावल-श्सं , समय के ल्तितांग देव-का हितचिन्तक ही रहा, श्रीर स्वयं प्रभा देवी के विरह से पीड़ित ललितांग देव को, समभा- षुभाकर धमेपर दढ़ किया । श्सी जम्बु द्वीप की पुष्पकलावती विजय में स्थित,- लोहागंल नगर के राजा का नाम स्वरीजंघ था । उसके, ल्मी देवी नाम की रानी थी । ईशान्य देवलोक का श्रायुष्य समाप करके, ललितांग देव ने इस लद्टभीदेवी रानी की कुक्ति से जन्म लिया। यहां उसका नाम वज्जज॑घ रखा गया | उधर अपने पति ललितांग देव के विरह से, स्वयंप्रभा देवी पीड़ पाने लगी। ˆ , अन्त में स्वयंप्रभा देवी भी, देवलोक का आयुष्य समाप्त होने पर, दसी पुष्पकलावती विजय स्थित पु-डरीकिणी नगरी केराजा यञ्जसेन की पुत्री हुईं। यहां स्वयंप्रभादेवी का नाम श्रीमती हुआ श्रीमती युवत्री हुई। दक दिन चह अपने सहल की छत पर छः ५८




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