हमारी राष्ट्रीय समस्याएँ | Hamari Rashtriy Samasyaen

Hamari Rashtriy Samasyaen by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० हमारी राष्ट्रीय समस्याएँ भी किसी एक जगह न होकर भारतवर्ष भर में फैले हुए हैं, श्रौर इस देश की एकता की याद करा रहे हैं। राम श्रौर कृष्ण केवल उत्तर भारत वालों के दी पूज्य नहीं हैं, उनकी कथा का प्रचार हर जगद है । वेद, पुराण, श्रीमदूभगवदूगीता, रामायण श्र मद्दाभारत सब की सम्मिलित सम्पत्ति है। जन्म मरण, विवादद-शादी की रीति- रस्म , होली, दिवाली, श्रावणी और दशहरे के त्योद्दार दर जगह मनाये जाते हैं । यददी कारण है कि इस जमाने में यद्दाँ राष्ट्र निमाण सम्बन्धी विचारों का ऐसा श्रासानी से प्रचार हो रददा है; नद्दीं तो इतने बड़े दविस्से में, जहाँ कइ तरह की अझलहद्‌गी मौजूद हो, एक राष्ट्र बनाने की, संसार में कोई दूसरी मिसाल नहीं है! भावों श्रौर व्यवद्दारों की इस अनोखी एकता से भारतवष की, बहुत प्राचीन काल में, बड़ी उन्नति हो गयी थी । सामाजिक, श्लाधिक राजनैतिक श्रादि सभी विषयों में इस देश की शक्ति बढ़ी हुई थी | यद्दी कारण था कि यहाँ समय-समय पर जो बहुत सी जातियाँ वआयीं, वे यहाँ के जन-स मुदाय में हिलमिल गयीं; श्र अन्त में यहाँ की दी दो गयीं; अब यहाँ यूनानी, हूण, सीथियन झादि के अलग- अलग होने का पता नहीं लगता । हमला करनेवाले इस देश के मित्र और बन्धघु बन गये । जीतने वाले द्वार मान बैठे, उनकी संतान को भारत-संतान कददलाने में गौरव या बड़प्पन मालूम हुआ । यहद बात अनेक सदियों तक रही । मध्य-युग की स्थिति--धीरे घीरे दालत बदलती गयी । सम्राट अशोक के बाद यहाँ शासन-संत्ता भी अकसर कमज़ोर छांदमियों के अधिकार में रही । देश अलग-अलग हिस्सों में बंट गया, श्र हरेक प्रान्त के श्रादमी अपने श्रापकों दूसरे प्रान्तवालों से जुदा समभने




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