रवीन्द्र पद्ध कथा | Raveendra Padh Katha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रचीस्ट्र-पदय कथा
न
फागुन महीना है, वकुल-वन-वी थिका में
दक्षिण पवन मतवाला सरसाया है
मंजरित श्राज श्रास्रवन में हुआ पुकुल
श्राज क्यों किसी की सुनने लगे भ्रमर-कुल
गुन-गुन जाने मन ही मन क्या गुनते से
गु'जरित भुज्ध घुमते स्वच्छुंद गंघाकुल
श्राज दल का दल पठान सेन्थ मदमत्त
कथुनपुरी में होनी खेलने को श्राया है ।
वहू थी संध्याकाल की सुहाती सुटपुट वेला
केथ्ुनपुरी के रमणीय राजवन में
श्राकर खड़े हुए पठान उपवन में
छेड़ती है वंशी राग मुल्तानी धुन में
एक लौ सुदक्ष तब दासियाँ रानी की ब्राई
होली खेलने के लिए हो प्रसन्न मन में
भुरमुद श्रोट में से री का-री का 'फॉकता-सा
भूलता था राग-रंगारवि भी गंगत में ।
पग की घमक, घछुम-छूम जाते घाघरे है
उड़े जाते भ्रोढ़ने है दविज्नन पवन में
दाहिने हाथों में सब थाली लिए फाग की
भूलती कि में पिचकारी रंग-राग की
रुतक-सुनक इठलाती हुई चलती है
चाएँ हाथ जल भरी भारी है गुलाब की
उड़ रहे श्रोढ़ने हैं, बाँकी क्षत्राखियों का
उमड़ रहा है दल श्राज राजवन में ।
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