इलाचन्द्र जोशी साहित्य और समीक्षा | Ilachandra Joshi Sahity Aur Samiksha

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Ilachandra Joshi Sahity Aur Samiksha by डॉ. प्रेम भटनागर - Dr. Prem Bhatanaagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जोवन भर व्यक्तित्व द् यह परीक्षा देवी पड़ी है भौर बडी वीरता का परिचय देकर फर्ट्ट-वलास सम्मर लेकर इसमें बहू सफन मी हुए हैं । भ्रापके विदारानुसार यह समाज वडा जालिम ठट्रता है, जो पपनपग पर व्यक्ति की उन्नति के मार्ग में मित्य नये भवरोध प्रस्तुत करता चतता है, किस्तु वीर तोग स्द्् नहीं करते, वे तो चट्टान को तरह भपने भादर्यों पर डरे रहने हैं धौर बढ़ते रहते हैं । कर जोशी जी ने झपने सत्तावन वर्पोय जीवन में ययाथं की माँधी के श्रतेक शक मे हैं । प्रहति-प्रेम से भोत-प्रोव जु्दी की कली से भी कोमत हुदय यौवन में पदा्पण करते ही जीवनपत बिवलता भोए वि्द्िनठा से भोत.प्रोत हो गया । द्रसरी में वात्म करुणा जगाने की कला से भनमिजक्ञष, परम म्रादर्शदादी युवक सदज पारिवारिक नेह भौर सौहादे से भी वचित रहा. और कई वर्षों तक निद्देश्य घमता रहो । धुमते हुए उसे भ्घिकतर धवना, तिरस्कार, पपेशा पौर प्रणा का प्रसाद मिता, शारीरिक भौर मानसिक चकान मिली किन्तु फिर भी घोजस्वी सादित्यकार पदराय! नहीं । यौवन के भ्राति ही यौवन का आनन्द कौन लुटना नहीं चाहता ? योयत के उन्माद का ना दिस पर नहीं चढ़तां, प्रेस के गोत कौन लह्दी गाता ? डिसतु यौवन भर प्रेम, सौदर्पाकर्पण और चचतता सभी को भ्रवने जाल में जकूइते में समय नहीं हैं। भौतिक विपमता भौर कठोर ययापं शे टवकर सेने वाले शाइसो बिरते हो होते हैं भौर उन्दी बिरतो में हमारे हिग्दी उपन्यात-जगत के इन्दु धीधुत इसायन्द जोशी भी हैं। वह एक कुदूहली दर्शक के सोते प्रेम भौर सॉंदप को देखते भर रे, उसमें डूबने की कोशिश उन्दनि ने तो बभी वो हो घोर ने हो किसी द्रूसरे को उस दिया मे इुबते देते उसका शमर्थन ही शिया । है धावश्यशता पढने दर उमा फिरोप धेवरय किया भौर ध्यकितिगत उन्नति मे सूग्य पर दिया । प्रेम दे सत्र में भादुवता थी भपेका पपाप घोर वाइस दोनों को हो भापते यडा महत्व दिया है । भपने बंय्तिक जीवन में भाप यो भी सिसी की भोरे दस करने को उन्मुख सही हुपे, मते हो शो ललता पाए पर मनोपुर्प होरर सतपरी पंपर मु्ी । ऐसी पहेग सलना को बाप डीयन थी यदादं रिदिठि से भगत बराहे रहे । भपने भाइयों बी रक्षा हि आपको पनेश दार तुम दुहपापंहीन हो । गपुदिह हो। कायर हो ' घादि ध्यग्यदाण भी गुनने दे, हिनतु दिए भी ये सटरघी धइ- राया नहीं, रिया मही । हाँ यू जहर टुदा हि पनेर दर बुध दिदोटस्यड पोट विनादात्मक विदार उसे सस्तिष्य थे घवइय सलदली मचाने के लिए धाते बह इन्टोने भतेव थार पवासाशिक झौर भर्नतिक मायें पर चलने की देते सोचो, हिस्वु उरन्यय यह ऐसा शोचते तदनव इनरे घवचन ये बंटा देवद इस्ें धिकारटा रहा पोर सह भागे थी ह्वाय देते से बूचें एक चेजाइनो हो टेठा रहा--हैं जोरों ढूने




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